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जसहरचरिउ
[ ३.२३.१-- २३ दुवई-जइ धुउ लोयमाणु णिरु णिञ्चलु किरियागुणविवजिओ।
__तो तहो कम्मबंधु कह होसइ भीसणभवसमज्जिओ॥१॥ बंधिं विणु कहिँ गुरुसीसत्तणु घडइ बप्प अवरु वि तवसित्तणु । सुद्धहो रइ तमु अंगि ण लग्गइ सग्गु मोक्खु किं कारणु मग्गइ । विणु जीवेण फासु किं सयण परियाणइ उक्कोइयमयण। विणु जीवेण जीह किं लक्खइ रसविसेस णाणाविह चक्खेइ। विणु जीविं पेन्छंति ण णेत्तई अग्गइ थक्कई वइरई मित्तई। विणु जीविं घुसिणाई ण माणिउ घाणिं कत्थ वि गंधु ण याणि उ । विणु जीवेण कण्णु णायण्णइ सदु सुहासुहु किं पि ण मण्णइ । विणु जीवेण सुठु णिच्चिट्ठई। पंच ताई कुलगुरुणा सिट्ठ। अयहरिहरईसरसिवणामई फासाइयइँ गुणग्गहधाम. । । घत्ता-णउ फासु ण रसु णउ रूउ तहो गंधु ण सद्द वि वज्जियउ ।
पर करणहिँ पंचहिँ पंचगुण जाणइ मई आयण्णियउ ॥२३॥
२४
दुवई-सुरगुरु लोयणेहिँ जं पिच्छइ इच्छइ तं समक्खयं ।
जो ण णियइ घरम्मि चिरपुरिसणिहाणघडं पि णिक्खयं । वायाकुंछ वंठु दप्पुब्भडु
विसयकसायरायरसलंपडु । सो किं जाणइ दव्वई फुरियई बायरसुहुमइँ दूरंतरियई। गोयइ वायइ णञ्चइ खेल्लइ कामिणिघणथण हत्थि पेल्लइ । अरिबल हूलँइ सूलइ फालइ खेत्तई गामई णयरइँ जालइ । पावकम्मु किं सञ्चउ पेक्खइ किं कारुणि कासु वि अक्खइ । जइ सिद्धंतु अदेहिं कहियउ लइ तो मई एउ जि सद्दहियउ । कुम्मरोमकंबलपंगुति
णहकुसुमंचिउ वंहि पुत्ति । घत्ता-णिकलु णउ जायइ णउ मरइ ण करइ ण धरइ णउ हरइ ।
णिक्कलु अरूउ परमेट्टि पहु भवसंसारि ण संसरइ ।।२४।।
दुवई-इंदपंडिंदचंदविसहरणरखेयरविरइयच्चणो ।।
अट्ठोत्तरसहासलक्खणधरु केवलणाणलोयणो ॥१॥ अपाडिहेरामललंछणु
णं उदयायलि थिउ मयलंछणु । धम्मचक्ककयमणमलणिग्गमु वीयराउ मुणि मुणिवरपुंगमु । एहउ होइ सयलपरमप्पउ तिं भासिउ हउँ जाणमि अप्पउ । सो ण णिच्चु पज्जाएं बुच्चइ दव्वत्थे पुणु णिच्चु जि सुव्वइ ।
२३. १. S T सिद्धहो । २. A भक्खइ । ३. S T गुणगणधाम इं। २४. १. T णिक्खियं । २. बायइ गायइ। ३. T लायइ। ४. T सूलइ। ५. T पावधम्म ।
६. T वंझापुत्ति । २५.१.T फणिद।
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