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________________ ३. १३. ५ ] हिन्दी अनुवाद भुरता बनाकर मेरी उस कान्ताको दे दिया । वह शरीरसे कोढ़ी हो गयी थी और घावोंकी पोवसे लिप्त थी, तो भी वह माँससे विरक्त नहीं हुई । इस प्रकार वेद-धर्मकी विरुद्ध भावनाके वशीभूत हुआ मनुष्य तामस - प्रकृति होकर तमतमप्रभा नामक नरकको जाता है । मैं तीव्र वेदनासे काँप रहा था, सब कुछ जान रहा था, किन्तु पशु होते हुए क्या कहता ? तीन पाँवपर खड़ा रहकर - करता हुआ मैं दशों दिशाओं में देखने लगा । किसका आश्रय लूँ और कहाँ चला जाऊँ ? हाय बाप ! वहाँ मुझे शरण देनेवाला कोई दिखाई नहीं दिया । इसी बीच दुःखकी खदानरूप एक अन्य कथाप्रसंग आ गया, उसे सुनिए । जो वहां बकरी होकर मरी थी वह मेरी माता अपने पापका फल भोगकर सिन्धुदेशमें एक भैंसके उदरमें भयंकर बलशाली भैंसा होकर उत्पन्न हुई ॥११॥ ८७ १२. माताका भैंसाका जन्म 1 वह भैंसा किसी वणिक्के मालका भार वहन करता हुआ पुनः उसी नगर में आया और दीर्घयात्रा से थककर सिप्रा नदी के जल में निमग्न हो गया। उसी समय राजाके खड्गधारी पुरुषोंसे परिरक्षित राजाका घोड़ा वहाँ आकर शीतल जल पीने लगा । उसे देखते ही भैंसा अपने जातीय स्वभाव के कारण रुष्ट हो उठा और अपने खुरोंसे जलको पीटता हुआ क्रोधपूर्वक उठा और अपने तीक्ष्ण सींगों से विदीर्णकर घोड़ेको वहीं मार डाला । राजाके किंकरोंने उसे पकड़ लिया और वे उसे वहीं ले गये जहाँ यशोमति राजा बैठे थे । वे बोले - हे देव, इस भैंसेने अपने सींगोंसे छेदकर आपके घोड़ेका संहार कर डाला । अतएव, हे प्रभु, इस अपराधीको मृत्युका दण्ड दिया जाये । राजाने कहा- घोड़ेको मारनेवाले इस कुविवेकी भैंसे को ऐसा धीरे-धीरे मारा जाये जिससे इसका जीव जल्दी न जाये । राजाने रसोइएसे कहा - इस वैरीको जीते-जीते ही अग्नि में पका पका कर मारो । राजाकी यह बात सुनकर निष्ठुर रसोइएने उसकी नाकके छेद में डोरा डाला और उसे खींचकर सामने कसकर मुँह बाँध दिया तथा पीछेसे पूंछ मोड़कर उसे भी बाँध दिया । फिर उसके चारों तरफ साँकल घुमा दी तथा पेटके नीचे आग जला दी । जब वह लपलपाती हुई अग्निशिखाओं से जलने लगा तथा जीभ निकालकर दुःखसे कराहने लगा तब त्रिफलाका खारा, तीखा और कड़वा पानी लाकर उसके आगे रखा गया । भैंसेने प्यासकी गर्मी के कारण उसे पी लिया । फिर कराहते हुए उसके चमड़ेपर मार लगायी गयी । इसके कारण बहुत मलसे पूर्ण उसकी आंतें पश्चिम द्वारसे निकल पड़ीं ॥१२॥ १३. भैंसेके मांसका भोज तथा चाण्डालबाड़े में हमारा कुक्कुट जन्म पकाते हुए जहाँ-जहाँ भैंसेका मांस पक जाता था, तहाँ तहाँ, हाय बाप, उसे काट लिया जाता था और आजी के नामसे उसीके पोते द्वारा वह श्रेष्ठ श्रोत्रियोंको परोसा जाता था । उसी समय राजाकी आज्ञा से एक दासने वेदनासे कराहते हुए मुझे पकड़कर धग धगाते हुए उस प्राणहारी अग्निपुंज में मुझे भी झोंक दिया। उस दाससे बचनेका मेरे लिए कोई उपाय नहीं था । कुशयुक्त हाथसे ले-लेकर और तीक्ष्ण शस्त्रसे काट-काटकर मेरे भक्त पुत्रने मुझे अग्नि में विसर्जित किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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