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________________ ८५ ३. ११. ८ ] हिन्दी अनुवाद आज जो भैंसा मारा गया है, उसका बड़ा अनिष्ट दुर्गन्ध आ रहा है । किन्तु एक दूसरी दासीने कहा- नहीं, यह देवीका निकृष्ट शरीर है, जो मत्स्यभोजनसे विनष्ट हो गया है । इसपर अन्य एक दासी ने कहा- ऐसी बात नहीं । मैंने जैसा कुछ देखा है, वैसा बतलाती हूँ । रानी ने, उस बड़े कारण अपने पतिको उनकी मातासहित, जो विषका भोजन दिया और मार डाला, उसी पापके बलसे नाक और ओठोंको सड़ा देनेवाला कुष्ट हो गया है और उसीसे रानीकी यह सड़ी दुर्गंध आती है । मैं भी समझता था कि वहाँ जो मांसका ढेर लगा था और भोजनके समय यहाँवहाँ ढोया जा रहा था, उसीकी वह दुर्गन्ध है । किन्तु उस स्त्रीकी बात सुनकर मैंने देवीके मुखका अवलोकन किया ॥९॥ १०. पाप-फलके सम्बन्धमें मेरे उस समय के विचार मैंने देखा कि रानी अपने समस्त अंगोंके सौन्दर्यं से रहित व अति लक्षणहीन हो गयी है । मैं उसकी ओर दीर्घकाल तक देखता रहा, किन्तु उसमें मेरी पूर्वपत्नीका कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया । विधाता परपुरुषगमन करनेवाली स्त्रीपर अवश्य रुष्ट होता है । इसीसे कोढ़के द्वारा उसकी नाक कटकर अब दिखाई नहीं देती । उसका जो बिम्बाधर, उसके जारकी दृष्टि में आया था, वह सड़कर गिर गया । जो नख जारके वक्षस्थल में प्रविष्ट होकर हर्षित हुए थे, वे अब नष्ट हो गये । जिन नेत्रोंके तारे चपलतासे जारपर आसक्त हुए थे वे अब व्रण ( घाव ) के समान हो गये हैं । जो स्तन जारके कराग्रोंसे भूषित हुए थे, वे फोड़ोंके समान पीबसे दूषित हो गये हैं । जिस केशकलापको जारने अपने हाथोंसे आकर्षित किया था उसे विधिने तोड़ दिया है (झड़ा दिया है) । जिन हाथोंसे जारका स्पर्श किया गया था, उनका अब ठाँव भी किसीको दिखाई नहीं देता । जिन पैरोंको जारसे समागम हेतु निवेदित किया था उनकी समस्त अंगुलियाँ सड़ गयी हैं । इस प्रकार मेरी दुराचारिणी भार्याको उसके पापसे यह देह दण्ड प्राप्त हुआ है । इस प्रकार जब मैं अपनी भार्याके दुश्चरित्रका स्मरण कर रहा था, उसी समय उसने कहा- यह जो देवों और ब्राह्मणको अर्पित किया गया है और जिसका घरमें यह ढेर लगा है, वह भैंसेका माँस घिनावना है, मुझे वह नहीं सुहाता । अतएव उसे रहने दो ॥ १०॥ ११. मेरी भार्याके लिए मेरा पैर काटकर पकाया गया रानी ने कहा - हे रसोइए, कहीं भी जाकर और देखकर इसी क्षण मारे गये हरिण या शूकरको लाओ, जो मेरी जिह्वा इन्द्रियको स्वादिष्ट लगे । यह सुनकर यशोमति राजाने कहा -- हरिण व वराहको रहने दो । विप्रोंने बकरेको मीठा व पवित्र कहा है । अतएव उसे ही मारकर अम्माको खिलाओ। यह जो यहाँ बकरा बंधा है, मिमिया रहा है और भैंसे के माँसको सूंघ रहा है, उसका एक पिछला पैर काटकर और पकाकर अम्माको दे । राजाकी यह बात सुनकर व आज्ञाके उल्लंघनसे भयभीत होकर उस दैत्यभृत्यने तुरन्त शस्त्रसे मेरा पिछला पैर काट डाला और उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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