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३. ७. ८ ]
हिन्दी अनुवाद काट कर पकायी जाती है । इस पर रानीने मेरी पूंछ कटवा ली तथा मसाले सहित उसे अग्निमें पकवाया। उसे भट्ट और पुरोहितोंने खाया। वहाँ मुझे देहका दुःख प्राप्त हुआ। खाये कोई और उसका फल पाये कोई और ही। इतनी विरुद्ध बातका भो वेद-मूढजन कुछ भी विचार नहीं करता। फिर उन्होंने उत्सुकतापूर्वक लौटकर अग्निकी ज्वालासे संतप्त उबलती हुई तेलकी कड़ाही में मुझे डाल दिया और मुझपर त्रिकटु अर्थात् सोंठ-मिरच और पीपल इन तीनको घोलकर छौंक दिया। मैंने अपना घर-पुर और परिजन सबको पहचान लिया और भयंकर मानसिक दुःखका अनुभव किया। शारीरिक दुःख तो मुझे कितना हुआ कि जिसका वर्णन करने में सरस्वती भी समर्थ नहीं है।
पकते हुए मेरा शरीर सिमसिमाने लगा। तब उसे झारी और चटुएसे कुचला गया। फिर बहतसे जीरे, मिरच और लवंगके जलसे मेरा मुख पसार कर भर दिया गया ।।५।।
६. श्राद्ध तथा मेरा मरकर अन्य जन्म-ग्रहण
उस तीखे और खारे जलको मैंने गलेको नालीसे झट निगल लिया। जिससे मेरा शरीर जलने लगा। मेरे लिए हाय वह दुःखका प्रसंग तमतम नरकवासी जीवके सदश था। मुझे उछालउछालकर तला गया। इस प्रकार हाय बाप, मैं दुःखसे नितान्त पीड़ित हुआ। फिर मुझे काटकाटकर और शरीरके कांटोंको बोन-बीनकर उन ब्राह्मणोंने तथा मेरे पुत्रने भी मेरा भक्षण किया। मेरी पत्नी तथा उसके जारने भी खाया और खाया मुझे उस समस्त परिवार ने। इस प्रकार मेरे नामसे मुझे ही खाया गया। इस प्रकार लोग अज्ञानसे दूषित हैं। हिंसा कर्मको धर्म कहा जाता है और श्रोत्रियकी बातों में आकर निर्दय लोगोंमें बुद्धिभेद उत्पन्न किया जाता है। वह जो चन्द्रवती कुकरो होकर और फिर सर्पके जन्मसे च्युत होकर सुंसुमार हुई थी और पुनः मरी थी, वही मेरी माता जो एक समय विभव और विभूतिसे सम्पन्न थी, वही अब पासके गांवमें बकरी होकर उत्पन्न हुई तथा मैं मीनरूपसे मरकर एक झुण्डके नायक बकरे द्वारा उसीके गर्भसे लम्बे कानोंवाला बकरा हुआ। कालक्रमसे मैं जवान हुआ। और तब जब मैं अपनी जननीके साथ ही मैथुनका सुख अनुभव कर रहा था तभी मुझे उस झुण्डके नायक बकरेने अपने सोंगोंसे आहत कर दिया। इससे मेरा चमड़ा फट गया और मैं मर गया ॥६॥
७. मेरा पुनर्जन्म
इस सप्तधातुमय जीवको भी कैसी विचित्रता है ? इस दूसरे जन्ममें मैं तथा मेरे द्वारा उत्पादित जोव दोनों साथ हो माताके पेट में स्थित हुए। वहाँ न तो लज्जा है और न वस्त्रोंका आच्छादन । पशुओंमें जननी भी पत्नी हो जाती है। उस समय मुझे इसका कोई ज्ञान नहीं था। मैं यों ही भीतर-भीतर दग्धायमान होता रहा। गर्भ में स्थित होता हुआ जब मैं पूर्ण-देह हुआ तथा कुत्सित जन्म की ओर बढ़ा तभी एक विशेष घटना घटित हुई। पूर्वकालमें जिस बकरेने मुझे उत्पन्न किया था, जो मेरी माता थी, और जिस मनोहरीका बकरा होकर रमण किया था एवं जिसके गर्भ में मैं पुनः निलीन था और गर्भसे निकलनेको आकांक्षा रखता हुआ दोनदशामें स्थित था, वे
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