SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० १५ १० ८० णाविउ ताकत महु पुंछु भट्टभडारएहिं तं खद्धउ अणुखाइ अणु हु किं पावइ पुणु हउँ जलणजालसं तत्तइ तेल्लकाहि कति णिहित्तउ निरु पुरु परियणु परियाणिउ देहदुक्खु पुणु के सीसइ जसहरचरिउ सिहिणा संभारेण पयाविउ । म हिँ देहदुक्खु आलद्धउ । मृदु जणु किं पण भावइ । कलियहिँ बलियहिं परियत्तइ । 'तियडुयतोयझळ किं सित्तड । मादुक्ख भीमु मइँ मोणिउ । जो वहुँ सक्करण संरासइ | धत्ता- - सिज्जंतहो महु वउ सिमिसिमइ चालुयचट् टुयचूरियउ ॥ बहुजीर मरियलवणो जलिण णिव्वाइउ मुहु पूरियउ || ५ | ६ दुवई–तं गिलिऊँण झत्ति गेलणालिवहेण डैहेइ अंगयं । तमतमणारयस्स सारिच्छमहो मह दुहपसंगयं ॥ १ ॥ उच्छल्लिवि उच्छल्लिवि तलियर विलुणिवि तणुकंटय त्रीणिवि भक्खि पणइणीइ जारेण वि मामेण उँजि संपासिङ हिंसाम् धम्मु पडिवज्जइ जा चंदमइ सुणहँ फणिभवचुअ माय महारी विवहूई मी जाउ छेलउ बोक्कडएण जूहपरिपालिं Jain Education International एम बप दुक्खें द्दिलियउ । भक्खि बंभणेहिं पुत्तेण वि । भक्खि सयलं परिवारेण वि । एम लोड अण्णाणि दूसिउ । णिग्घिणु सोत्तियवाएं भिज्जइ । सुमारु होइवि पुणरवि मुअ । 'छाली पासँगामि सा हूई | ताहि गभ बिरकण्णालउ | हउँजुवाणु हूवउ गयकालिं । धत्ता - णियजणणिहि मेहुणसण्णसुहु अणुहवंतु सिंगिं हथउ । जूहेसिं ताएं अइएण वम्मुल्लूरिउ हउँ मुअउ ||६|| ७ दुबई - सत्तमधाउ जीउ बिण्णि वि सह थक्कहूँ माउपोट्टए || अप अपण मइँ जणियउ दुविहभवे पयट्टए || १ || उहिँ लज्जण णिवसणचेली सुयहँ जणणि वि होइ महेली । इहूँ उँ का मि णउ बुज्झमि वह अंतो अंतोज्झमि । गब्भि णिसण्णउ हउँ संपुण्णउ अच्छमि जाम कुजम्मि पवण्णउ । आसि जेण जायउ जा मायरि जाहि वि पुणु उँ गब्भि णिलीणउ कामाउरु मायापियरुल्ल उ म रमि अएण मनोहरि । अच्छमि णिग्गमकंखिरु रीणउ । तं कीलंतर अयमिहुणुल्लउ । ४. ST यिपुरु घरु । ५. T जाणिउं । ६. T सरस्सइ । ७. ST लवणजलेण; A लवणसहिउ । ६. १. A गलिऊण । २. A गलणालिवहेइ; T गलणालीवहेण । ३. S डहेय । ४. T दुक्ख संगयं । ५. AST वियविहूई । ६. T छालिय । ७. A पासिगामि । ८. T संभूई । ९. A अयवइणा । ७.१ A मायपोट्टए । [ ३.५.७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy