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________________ २. ३५.३ ] हिन्दी अनुवाद ६९ किन्तु मैं घर के आँगन में घूमता, खेलता तथा आकाशमें उड़ता हुआ रहने लगा । तत्पश्चात् एक दिन जब में ऊपर उड़कर अट्टालिका के शिखरपर चल रहा था तब मैंने एक गरजते हुए मेघको कैसा देखा जैसे मानो ग्रीष्मकालरूपी शत्रुपर उसका कोई विरोधी सुभट रुष्ट होकर गरज रहा हो। मैंने पीले और हरे इन्द्रधनुष को भी देखा जैसे मानो आकाशरूपी मन्दिरमें तोरण लगाया गया हो । उस बिजलीरूपी चोलीसे विभूषित - देह घनमेघमालाने इन्द्रधनुषको ऐसा धारण किया था - जैसे मानो किसी युवतीने विचित्र उपरनी ( ओढ़नी ) धारण की हो ॥३२॥ ३३. मयूरका रानी और उसके जार कुबड़ेपर आक्रमण मैं पाउस ( वर्षा ) देखकर रोमांचित हो उठा और परमानन्दसे नाचने लगा । फिर मैं रो उठा और बड़े-बड़े आँसू बहाने लगा, जो मानो मेरे पूर्वजन्म के अशुभ स्मरणसे गिर रहे हों । फिर भूमितपर उस बड़े को देखा जो मेरे पूर्वजन्मकी प्रियतम रानीमें आसक्त था । दुर्भाग्यकी विडम्बनावश मुझे ईर्ष्या हो उठी और में रुष्ट होकर उन दोनोंके ऊपर जा चढ़ा । मैंने अपने चपल पंखों, नखों और चोंच से तथा पंखोंकी झड़पसे उन्हें धराशायी कर दिया । वे हास्य और रति करनेवाले निकृष्ट जार ( दोनों व्यभिचारी) आहत होकर ऊँचे हाथ करके अपनी रक्षा करने लगे । उनके शरीरसे रुधिरकी धार निकल पड़ी और वे दोनों विह्वल होकर छटपटाने लगे । रानीने मुझे अपने मणिमय कमरपट्टेसे मारा और मेरा पैर मरोड़ दिया । जब मैं राजा था तब मेरी बराबरी न कर सकनेवाले कुबड़े को नहीं मारा और अब छोटा सामोर होकर मैंने उसपर हाथ चलाया ||३३|| ३४. मयूरका मरण फिर समस्त राजपरिवार उठता-गिरता दौड़ पड़ा और मेरे पीछे पड़ गया । उनमें से एक fort कुपित होकर मुझपर अपनी पावड़ी फेंक कर मारी । अन्य एकने मुझे चमरदण्डसे मारा तो दूसरेने कपूर-करंडक ही दे मारा। एक अन्यने आकर मुझपर चटुआ ( कलछुरी ) के फलसे प्रहार कर मेरी ताड़ना को । किसीने अपनी हारावलीसे मारा, तो किसी दूसरीने पुष्पांजलिसे हो । एक अन्य वीणादण्डसे आघात किया । मैं किसी प्रकार रेंगकर वहाँसे भागा । किन्तु 'पकड़ो, पकड़ो' कहता हुआ वह कुबड़ा गृहदास मेरे पीछे लग गया । उस अत्यन्त रौद्र कोलाहलसे आकर्षित होकर उस मेरी जननीके भवान्तररूप श्वानने आकर मेरा गला पकड़ लिया । में कम्पित हो उठा और मेरे प्राण निकल गये || ३४ || ३५. श्वानका भी मरण और यशोमति राजाका शोक यशोमति राजाने उस लम्बी और दृढ़ सांकलसे बंधे हुऐ कुत्तेका गला पकड़कर दबाया । किन्तु उस निष्ठुरने उनके छुड़ानेपर भी मुझे नहीं छोड़ा। इसपर राजाने एक भालेके फल से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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