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________________ जसहरचरिउ [२. २७.९जहिं घुरुहुरंत दाढाकराल सूलच्छहिँ सहुँ जुझंति कोल । "कंदुल्लगहरगद्दब्भु जेत्थु हरिहुल्लिहिँ जहिं दूँसियउ पंथु । पंचासहिँ थूण दारियाई जहि भिल्लिं हरिणई मारिया । जहिँ गहिरई घारई परिभमंति णिरु वायडउल जहिं चुमुचुमति । जहिं वेल्लिहिं वेढिय तरुवराई णं कीलहिँ अवरुंडणपराई। घत्ता-तहिं काणणि तरुवरघणि असुहकम्मपरियम्मि ।। बरिहणकुलि दुहसंकुलि आणिवि घित्तु कुकम्मि ॥२७॥ २८ अइदारुणभीसणवेणगहणि अवइण्णु मऊरिहि गब्भि खणि । उयरग्गि दडूढउ बप्प किह खलवयणहिं सजणु पुरिसु जिह । तहिं दुक्खहिँ तत्तउ कहमि केम तत्तइ कडाहि णारइउ जेम । छुडु उयरहो हुँतउ णीसरिउ छुडु पक्खिणिपक्खवाउ धरिउ । कंटयतरुखरसकरखरहे छुडु पाउ ण देमि देमि धरहे। काणणि विसदंसहँ हउँ डरमि छुडु मायइ परिरक्खिउ चरमि । छुडु किमिउलु चंचुई चूरियउ पोर्दुल्लउ छुडु म. पूरियउ । कोलंती विणिय वणभमिणि ता वाहिं मारिय महु जणणि । सा लइय णिवंधिवि चेलिय॑हिं हउँ पुणु घल्लिउ उच्चोलियहिं । लइ रडइ मोरु पारद्धियहो । किं प्रसइ मासालद्धियहो। घत्ता-तहिं गिम्हई देहुण्ह ई हउँ संताविउ जेहे ॥ वाएसरि परमेसरि वण्णहुँ तरइ ण तेहउँ ॥२८॥ २९ आणिय गामहो छुडु णिहविय मायरि तलवरहो परिविय । विणिवारियमंदिरमंजरए हउँ आणिवि पित्तउ पंजरए । हियउल्लउ दुक्खें सल्लियउ ता वणयरघरिणिय बोल्लियउ । मुहु छुहइ कलेवरु थरहरइ सिसुमोरिं कवलु वि णउ भरइ। डिभाई काई खाहिंति तणु तुहुँ किं खाएसहि भिल्ल भणु । पइँ गरुय मोरि दिण्णी परहो हो जाहि समर मावहि घरहो। णिसुणिवि णियकंतहि वयणगइ सहसत्ति चिलायहो जाय मइ । णिउ हउँ वग्गुरियई विक्किणिउ सत्तुवपत्थे तेण जि किणिउ । आरक्खिएण णउ भक्खियउ घोरहँ मज्जारह रक्खियउ । घत्ता-तलवरघरि हंसु व सरि हँउँ सुच्छायउ जायउ ।। कणु भुंजमि जणु रंजमि सुमहुरमुक्कणिणायउ ॥२९॥ ७. S कुंटुल्लगहिरु; A कंदुल्लगुहिर । ८. T वासियउ । ९. A बरहिणकुलि । २८. १. S इय । २. S वणगहणि । ३. T omits this line | ४. S जढरहं । ५. A कक्कर । ६. S पेट्टलउ; T पेटुल्लउ; A पुटुल्लउ । ७. ST विणिहय; A बरहिणि । ८. T वेल्लियए । ९. ST उच्चेलियहे। १०. ST देहम्हइ। ११.5 केहउ । १२. S जेहउ। २९. १. S अवट्टविय; T पट्टविय । २. ST सवर। ३. T आरण्णिएण। ४. T हंसच्छायउ (हं सच्छायउ ); S हउं सच्छायउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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