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२. २७.८]
हिन्दी अनुवाद चल रहा हो। कोई युवती लालवस्त्र धारे हुए थी जो मानो सूर्यके पीछे-पीछे सन्ध्याके समान चल रही थी। उनमें से बहुत सी उस प्रजापालन धर्मके ज्ञाता राजाके साथ ही मानो मृत हो गयी थीं। कितनोंने अपने कंकण, हार व डोरे त्यागकर घोर तपश्चरण धारण कर लिया। किन्तु वह मनको मैली कुबड़ेमें आसक्त दुष्ट और पापी अमृतादेवी अपने निवाससे नहीं निकली। नर-नारियोंने बड़े दुःखसे आतुर होकर हाथ ऊपर करके धाह दी। कुछ अन्यने जो उचित समयकी प्रतीक्षा कर रहे थे निश्चयपूर्वक अपने सिर काट डाले। किसीने अपने स्वामीके स्नेहका स्मरण कर अपने देहके नो टुकड़े कर डाले । कोई गुणशाली कटारीसे अपना हृदय विदोर्ण करता हुआ चितासे जा चिपटा। कितने ही वीर पुरुष भालोंपर झूलने लगे तथा कितने ही धीर पुरुष अपनेको अग्निमें होमने लगे। इस प्रकार महाकालके दाहिनो ओरके क्षेत्रमें ले जाकर पुत्रने अपने पिता और उनकी माताका दाह-संस्कार कराया। अग्नि-संस्कारसे शेष रहो अस्थियोंको लेकर उसने गंगामें जाकर छोड़ा। फिर मेरे पुत्रने मेरे नामसे अत्यन्त सुन्दर गोधन दानमें दिये। उसने अग्रहार ( भूमि ), स्वर्ण, उत्तम चिकने सघन वस्त्रोंका भी दान किया। ध्वजा, छत्र और भूषण भी दिये तथा श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको शासन भी लिखाकर दिये। मेरे पत्रने मेरे नामसे ऐसे धनधान्यके दान भी दिये। निर्धनोंका दारिद्रय दर हो। जो जन्मसे अथवा रोगसे अन्धे हो गये थे. भखे थे व अन्य क दुःखी थे उनको भी समुचित धन-धान्य दिया। यशोधर कहते हैं कि हे राजन् मारिदत्त, मेरे नामसे मेरे पुत्रने गोसूतों (बैलों) के विवाह भी कराये। तो भी मुझे उत्तम मनुष्य जन्मकी प्राप्ति न हुई। हे राजन्, जीवोंका कर्म बड़ा बलवान् है।
___ विषयासक्तजीव इस घोर संसारमें तब तक भ्रमण करते हैं जब तक उन्हें दर्शन ज्ञान और चारित्र्यको प्राप्ति नहीं हो जाती और वे तदनुसार भाव नहीं रखते ॥२६॥
२७. हिमालयके घोर वनमें यशोधरके जीवको मयूरयोनिमें उत्पत्ति हिमवान पर्वतके दक्षिण भागमें शीतल लताओं और वृक्षोंसे सघन वन है जहाँ व्याघ्र, सिंह, गज और गैंड़े, सैकड़ों प्रकारके दुर्गाह्य हाथी, भाल तथा अन्य जंगली पशु एवं बड़ी संख्यामें सांभर और रोहित और सेनमृग इनको भोल लोग क्षुब्ध करते हैं। जहाँ बहुतसे मैग्धूस ( नेवले ) भ्रमण करते हैं और जिनके गात्रोंसे सदैव घूघू-घूधू शब्द निकलते हैं । जहाँ परड़ा ( वनकुक्कुट ) कूका देते हुए घूमते हैं। तथा झिल्लरी और खच्चेल गुमगुम ध्वनि करती हैं। जहां भील, पुलिंद व नाहल वृक्षों और लताओंके फल बीनते हैं । जहाँ शाखामृग ( बन्दर ) कुरकूराते हैं और वृक्षोंकी शाखाओंपर चढ़कर झूलते हैं। जहाँ उड़नशील हरित शुक ताम्बूलकी लतासे चिपटकर
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