SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२.२१. १० जसहरचरिउ घत्ता-सुदलिल्लिं जिह फुल्लिं फलु होही जाणिज्जइ ॥ अविहंगि तणुलिगि तिह परहियउँ मुणिज्जइ ॥२१॥ २२ जइ पुणु रिसित्तु ण परिग्गहइ तो वसुहाहिउ मई णिग्गहइ । इय चिंतिवि हउँ पिम्मि तविउ पंयवडियइ देविए विण्णविउ । मई तुज्झु सुमंगलु चिंतियउ अंतेउरु पुरु आमंतियउ। भो अज्जु भोजु देवायरिउ भुंजिवि जोइणिभुत्तुव्वरिउ । सुविहाणई धम्में लइयाई होसहिं बिण्णि वि पवइयाई। पई विणु हउँ जीविउ उ धरमि परमेसर पई सहुँ तउ चरमि । जिम कामहो रइ सुरवरहो सइ जिह परममुणिंदहो सुद्धमइ । सिरि हरिहि सीय रहुवइहि जिह हउँ अणुगामिणि पिय तुज्झु तिह । घत्ता-तवचरणु वि जमकरणु वि पई सहुँ मरणु वि भावइ । पियं पहँ विणु महु जोव्वणु जणु अंगुलियई दावइ ।।२२।। परपुरिसु रमिवि रइविंभलए जं रयणिहि दुक्किउ किउ खलए। तं मइँ सिविणयसमाणु गणिउ मोहंधिं तं कलत्तु भणिउ । उठुन ठु देवि अईरुइरहिउ किं पणयभंगु मई तुह विहिउ । ता उट्ठिय सुंदरि चंदमुहि कित्तिमु हसंति रंजंति सुहि । सोयारवयणविहिं णंदियउ ता हउँ बंदियणहिं वंदियउ । णियकयकम्मेण व पेल्लियउ जणणीइ समउ तहिं चल्लियउ । जहिं पंचवण्ण मरुहयधयउ महएविणिकेयउ तहिं गयउ । उवविठ्ठउ पडपिहियासणइ मणिकिरणजालभाभूसणइ । परियलु वित्थारिउ कणयमउ *णं उग्गमिउ णवदिणयरउ। कच्चोल थाले सोहंति किह गयणयलवडिय णक्खत्त जिह । जेवणवेलइ महमहइ सह बहुरसरसोइ णं सुकइकह । घत्ता-अइकोमलु सरलामलु धवलु कुरु किह सीसइ॥ तं भोयणु गुणमोयणु पिसुणसमाणउ दीसइ ।।२३।। २४ दोफोलियाइ हउँ फालियउ णं वट्टमि जमपुरचालियउ । दालिइ णवकंचणवणियइ ताडिउ णं विरइयकण्णियइ । डडढउ चोप्पडु पुणु मई डहइ णं दुट्ठधरिणिसंगमु वहइ । पुणु मंडय ढोइय मंडलिय मारंति व मई परमंडलिय । ८. AST परि हियउ । २२. १. T पइवडिइ; A पयवडिइ । २. S किम । ३. ST पई सहुँ परमेसर । ४. S प्रिय । २३. १. S परपुरिसरइपरइ; T परपुरिसरायरइ । २. ST अइरइरहिउ । ३. S सूयार । ४. S णउ । ५. T जेमण । २४.१. ST read this line after the next. २. AS दड्ढउ । ३. T वम्मई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy