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२. २४.४
हिन्दी अनुवाद
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जिस प्रकार सुपुष्ट दलोंसे युक्त फूलसे यह जान लिया जाता है कि फल उत्पन्न होगा, उसी प्रकार अविभंग शरीर चिन्होंसे परके हृदयको भी समझा जा सकता है ||२१||
२२. रानीके द्वारा भोजका आमन्त्रण
रानी आगे विचार किया कि यदि इसने मुनिव्रत धारण नहीं भी किये तो फिर राजा रहकर यह मुझे दण्ड देगा । इस प्रकार चिन्तन करके देवी मेरे पैरों में गिर पड़ी और उसने मुझे प्रेमसे तप्त करके प्रार्थना की कि हे देव, मैंने तुम्हारे कल्याणका विचार किया है और समस्त अन्तःपुरका आमन्त्रण किया है । अतएव आजके आयोजित भोज में योगिनी देवोके भुक्तसे बचे हुए खाद्यका भोजन कर कुलधर्मसे पूरित होकर हम दोनों ही प्रव्रज्या धारण करेंगे । आपके बिना तो मैं जीवन धारण नहीं कर सकती । अतएव हे प्राणेश्वर, भी आपके साथ तप करूंगी जिस प्रकार कामदेवकी रति, इन्द्रकी शची ( इन्द्राणी ) परममुनिकी शुद्धमति, विष्णुकी श्री ( लक्ष्मी ) और रघुपति रामकी सीता अनुचारिणी है, उसी प्रकार हे प्रिय, मैं आपकी अनुगामिनी हूँ ।
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मुझे आपके साथ तपश्चरण, यमकरण अथवा मरण भी भाता है। किन्तु हे प्रिय, आपके बिना तो लोग अंगुली से मेरे यौवनकी ओर संकेत कर मुझपर शंका करेंगे ||२२||
२३. भोजको स्वीकृति और आयोजन
कामसे व्याकुल हुई उस दुष्ट रानीने गतरात्रि परपुरुषका रमण करके जो पाप किया था उसे मैंने अब स्वप्न के समान समझा और मोहान्ध होकर पत्नीसे कहा- "हे देवि उठो, उठो । मैंने क्या कभी उदासीन होकर तुम्हारे प्रेमको भंग किया है ?" यह सुनकर वह चन्द्रमुखी सुन्दरी कृत्रिम हँसी हँसती हुई अनुरक्त और सुखपूर्ण भावसे उठ खड़ी हुई । उसी समय बन्दोजनोंने उदार वचनयुक्त रचनाओंसे मेरा अभिनन्दन और वन्दन किया। फिर मैं अपने किये हुए कर्मोंसे प्रेरित होकर अपनी माताके सहित चल पड़ा और उस महादेवीके निवास पर पहुँचा जहाँ पचरंगी ध्वजाएँ पवनमें फहरा रही थीं । वहाँ मैं वस्त्र से आच्छादित एवं मणियोंके किरणसमूहकी कान्तिसेभूषित आसनपर बैठ गया । मेरे सम्मुख स्वर्णमय भोजनपात्र रखा गया, जैसे मानो नया सूर्य उदित हुआ हो । थालमें रखी कटोरियाँ ऐसी शोभायमान हुईं जैसे गगनतल में तारागण उदित . हुए हों । जीमनकी वेलामें समस्त भोजनशाला उस नाना रसोंयुक्त रसोईसे महक उठी, जैसे सुकवि द्वारा रचित कथा नाना काव्यरसोंसे आकर्षक हो उठती है ।
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वह अति कोमल, सरल, निर्मल और श्वेत ओदनका क्या कहा जाये ? वह भोजन गुणों का अपहरण करनेवाले दुर्जनके समान दिखाई दिया ||२३||
२४. भोजनके पकवान और उनमें विष
दो थालियाँ परोसी गयीं जिनसे मेरा हृदय फटने लगा, मानो मैं यमपुरको ले जाया जा रहा हूँ । नये स्वर्णके वर्णकी दालसे मानो एक कटारी बनाकर में मारा जा रहा हूँ। ऊपरसे परोसा हुआ घृत मुझे ऐसा जलाने लगा मानो दुष्टागृहिणीका समागम हुआ हो । फिर गोलाकार माँडे परोसे
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