________________
५६
जसहरचरिउ
[२. १९.३महु जीवियन्वु धुउ अम्मि जइ मारिजइ जीउणे जीव तइ । ता मई असि कढिवि णिययसिरि लाइउ वरकुंडलमउडधरि । महु जणणि हाहाकारु किउ पासत्थहिँ गरवरेहिं धरिउ । ता थेरिश पयवडियइ लविउ मई पुत्त असञ्चउ सच्चविउ । जाइ जीउ ण देहि सचेयणउ ता दिजउ अवरु अचेयणउ । जो पहरिउ ण मुणइ वेयणर तोहउँ ठिउ मउलियलोयणउ । अम्माएविश गग्गिरगिरए
जं भासिउ दिट्ठपरंपरए । तं जइ वि अहम्मु तो वि करमि पडिसिविणमिसिं पुणु वउ धरमि । __ घत्ता-अम्हारउ लिप्पारउ विहसिवि अम्मइँ भाणिउ॥
तिं कुक्कडु वण्णुक्कडु पिटिं णिम्मिवि आणिउ ॥१९॥
सो सरइ व फुरइ व उड्डइ व सो वलइ व चलइ व वड्ढइ व । सो सज्जीउ व दइविं घडिउ महु तणियहिं दिहिहिं आवडिउ । सो पडहहिं संखहिं मद्दलिहिं वजंतिहिं 'टिविलिहिं काहलिहिं । णाणातरुकुसुमसमच्चियउ
दहिवंदणचंदणचेच्चियउ । सो परिवारई विणिवेइयउ कुलदेविहि अग्गइ घाइयउ । मायइ कुंकुमजलु घत्तियउ तं रत्तु गलंतु विचिंतियउ। पिटठु वि जंगलु मण्णिवि गसिउ संपुण्णु अपुण्णु समब्भसिउ । जिह बभैणवउ महु वज्जरिवि ढिढिसु गिलंति पलु संभरिवि । पवियप्पिउ किं ण होइ सहलु तिह अम्हह जायउ पावमलु । घत्ता--पुणु जोइणि भयदाइणि मइँ पणविय सब्भाविं ।।
पई दिई संतुट्ठई जणु मुच्चइ संताविं ॥२॥
२१
जंघाबलु दढयरु बाहुबलु __ महु देहि देवि जीविउ अचलु। दुत्तरि कंतारि विहुरि धरहि परिरक्ख सुरेसरि महु करहि । इय देविहि हउँ पइटठु सरणु *णउ जाणमि आसण्णउ मरणु । घुरु जाइवि सिरिकलसेहिं हविउ णियणंदणु रज्जि परिढविउ । अप्पुणु किर वणवासहु चलिउ तउ करहुँ णवर दइवें खलिउ । पियतणयहो रज्जु समप्पियउ कंत, णियकज्ज वियप्पियउ । जं मई जारिं सहु कीलियउ तं रयणिहिं एण णिहालियउ । इयरह कहँ कंखइ तवयरणु सामंतमंतिमहिपरिहरणु ।
णिच्छउ मई एउ परिक्खियउ तणुलिंगि मणु उवलक्खियउ । १९. १. T ण जीवकए; ण अण्णु तए । २. S हाहारउ । ३. S सो । ४. ST पयगयसिरए । ५. A वउ
उद्धरिमि। २०. १. T तिविलहिं । २. S अच्चियउ । ३. S reads दोहि वि भावें परिवारियउ। ४. T पिच्छियउ।
५. S भणघिउ; T वंभणघिय; A वंभणघउ । २१. १. T दियबलु । २. T सबलु । ३. Sणवि । ४. T घरि । ५. T हउं कलसिहि । ६. S चरहुं; ___T करिमि । ७. T कम्मु ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org