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________________ २. १९. २ ] हिन्दी अनुवाद ५५ 1 अथवा पंखोंवाले पक्षी होते हैं । वे लाल आंखों वाले सर्प अथवा मांसभक्षी मच्छ भी होते हैं और वे छेदन, रुंधन, बन्धन, वंचन लुंचन, खेंचन, कुंचन, लुट्टन, कुट्टन, घुट्टन व बट्टन, कट्टन नाना प्रकार के पीड़न, हूलन व चालन तथा तलन, दलन, मलन और गिलनके दुःख तिर्यंचयोनियोंमें, नरकों में, मनुष्यों में और वृक्षोंमें जन्म लेकर भोगते हैं । वे स्वर्गं कैसे जा सकते हैं ? यदि पशुहिंसा परमधर्मकी उत्पत्ति हो तो बहुगुणी मुनिको छोड़कर पारधिको क्यों न प्रणाम किया जाये ? ||१७|| १८. मिथ्याचरण और उसके दुष्परिणाम चाहे मन्त्रसे होम करे, खड्गसे पशुको मारे, दिशाओंको बलि दे, अग्निमें आहुति दे पितरोंको स्थापित करे, देवोंको चढ़ाये, कषायवस्त्र पहने, जटाधारण करे; लालवस्त्र धारण करे, बड़ा चीवर पहने, खूब स्नान करे या धूलि लपेटे, व जड़ अभिमानी होता हुआ अपनेको पीड़ित करे व दमन करे अथवा नंगा घूमे, अपना सिर मुड़ाये, मांस खाये, रुधिर गटके, गुरुजनोंसे भाषण करे, वनका सेवन करे आतापन, चान्द्रायण, शुद्धोदन तथा फल भोजनादि द्वारा आत्मताप करे, व्रतका उद्यापन करे, चिरकाल तक तप करे, तथापि जो कोई मरणके भयको दूर करनेवाली जीव दया नहीं करता वह दूषित मन होनेके कारण भले ही धन, मणि, आभरण, गोकुल व भवनका दान करे तो भी वह कुयोनियोंमें भ्रमण करता ही है । उसे सद्गति प्राप्त नहीं होती । यह सब मिथ्याचार जिससे जीवका संहार हो उसे ज्ञानधारी भगवान् शान्ति अर्हन्तने न किया और न कहा ||१८|| १९. यशोधरका साहस व माता द्वारा अन्य उपायका सुझाव यशोधरने कहा कि उक्त प्रकार मिथ्या आचरण करनेवाला नर अपने जन्म-जन्म में बहुगधारी और भूभार होता है । वह जन्म-जन्म में दुःख अनुभव करता है । उसे सुख कहाँसे प्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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