________________
जसहरचरिउ
[२. १३. १६ता दिट्ट जोहु दाढाकरालु दंडयकरु णं पच्चक्खकालु । दुद्दरिसणु भीसणु दुणिरिक्खु रत्तप्पलदलसारिच्छचक्खु । सो भणइ अम्मि लहु लेहि दिक्ख जिणणाहहो केरी परमसिक्ख । णं तो सपरिग्गहु खामि अज्जु कहो तणिय पुहवि कहो तणउ रज्जु । मई तुंडु वि मुंडु वि मुंडियउ दूसहु इंदियबलु दंडियउ। घत्ता-सुउ जसमइ णिच्चलमइ ठविवि रज्जि तं किज्जइ ।।
णिसि दिट्ठउ णिकिट्ठउ सउँणु माइ''मण्णिज्जइ ।।१३।।
२०
तं णिसुणिवि भासिउ जणणियए अण्णाणइ मुणिगुणहणणियए । कुलदेविहि आसाऊरियहे चिंतवियमणोरहगारियहे। बहुभेय जीव दिज्जति बलि पसमिज्जइ दुक्ख किलेस कलि । तुह संति होउ महु णंदणहो सज्जणमणणयणाणंदणहो । हियउल्लउ करुणिं कंपियउ तं णिसुणिवि मइं पडिजंपियउ । पाणिवहु भडारिश अप्पवहु किं किजइ सो दुक्कियणिवहु । कहिँ चुक्कइ माणउ पसु हाणिवि पावेण पाउ खज्जइ खणिवि । जं चिंतिज्जइ विप्पिउ परहो तं एइ खणद्धिं णियघरहो । मारउ परु मारिवि पुणु मरइ . कहिँ विग्घमहाणइ उत्तरइ । घत्ता-इहलोयहो परलोयहो जीवहिंस भयगारी॥
दुणिरिक्खा आउक्खन किं किर करइ भडारी ॥१४॥ किं णत्थि चरु उ कि मेसउलु किं णत्थि देउ किं देवउलु । किं णस्थि मज्जु भक्खु वि सरसु कि जणु ण जाउ सिवसत्थवसु । किं चिरणर सयल वि खयहो गय किं तेहिं ण जोइणिपुज्ज कय । किं होइ हिंस जगि संतियरि सिलणावइ मूढ तरंति सरि । जं मुणिगणणाहहिं पिसुणियउ तं कह मि माइ पई णै सुणियउ । परमत्थु अहिंसाधम्मु जए
मारिज्जइ जीउ ण जीवकए । तं णिसुणिवि अम्मइ बोल्लियउ जिणवयणु णिसुंभिवि घल्लियउ । जगि वेई मूलु धम्मंघिवहो वेएण मग्गु भासिउणिवहो। तं किज्जइ बलि वेएं महिउ । पसुमारणु परमधम्मु कहिउ ।
घत्ता-पसु हम्मइ पलु जिम्मइ सग्गहो मोक्खहो गम्मइ ।।
जिह दियगुरु तिह कुलगुरु चवइ एम पंविउलमइ ।।१५।।
इय मुणिवि
पसु हणिवि। करि संति
तुह कंति । तुह तुहि
तुह पुट्टि। जयलच्छि
धवलच्छि । १०. ST माणिज्जइ। १४. १. AST जंपिउ । २. ST णिण्णाणइ । ३. ST पूरियहे । ४. T किं । ५. T मारइ; A मारिवि । १५. १. T सरिसु । २. ST णाइहिं । ३. T णिसुणियउ। ४. A वेय । ५. ST परमपुण्णु । ६. T
पविमलमइ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org