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________________ ४८ जसहरचरिउ [२. १२.५अरुणायवत्तु णं णहसिरिहि णं चूडारयणु उदय गिरिहि । लोहियलुद्धे जगु फाडियउ णं कालिं चक्कु भमाडियउ । कुंकुमपिंडु व दिसिकामिणिहिं रत्तुप्पलु संझॉपोमिणिहिं । ता जयमंगलतूरहँ रवेहिं पडिबुद्धउ फंफावयसरेटिं। कयकायसुद्धि मई तक्खणेण ढोइयउ पसाहण परियणेण । तहिं अवसरि मइँ चिंतिउ मणेण किं रजें किं महु भूसणेण । जो अंगराउ सो मयणमूलु तहो फलु मई रणिहिं दिट्ठ सयलु । अहवा जइ मइँ आहरण चत्त ता जणहँ मज्झि वित्थरइ वत्त । किं अंतेउरु अमणोज्ज जाउ अइदुम्मणु दीसइ जेण राउ । जे महु आसण्णा विउस के वि परचित्तवलक्खहि सयलु ते वि । उ मण्णिवि मई किउ अंगराउ णं अंगि विलग्गउ दुहणिहाउ । जइ कह व देवि इह वत्त सुणइ सइँ भरइ मई वि तक्खणि हणइ । जाणियइ सुहासुहु सयलु राय जीविउ मरणु वि अरिदिण्णघाय । लाहालाहु वि जं मुहिगहिउ णट्ठउ पवसिउ वि सुहिउ दुहिउ । जाणंति जोइ जे विउलबुद्धि जहुँ हत्थगिज्झ ठिय सयल सिद्धि । इय एत्तिउणाणि मुणं ति जे वि तियचित्तई णउ जाणंति ते वि । घत्ता-करि बज्झइ हरि रुज्झइ संगरि परबलु जिप्पइ ॥ कुकलत्तहि अण्णासत्तहि चित्तु ण केण वि घिप्पइ ॥१२॥ २० अत्थाणभूमिग उ मणि विसण्णु दोवासइं चमरइं महु पडंति सहमंडवि खुजयवावणाई वीणावंसई गेयइँ झुणंति एयाइँ जइ विणिरु सुहयराइँ पोत्थयवायणु आढत्तु सरसु तहि अवसरि पडिहारिं वरेण पइसारिय भड सामंत मंति पयजुयलु णविउ महे णरवरेहि अवलोइय णरवइ मई णवंत गोवि ट्ठि णिविट्ठ णरिंद सव्व *ता जणणि महारी ढुक्क तहिं तवचरणउवाउ चित्ति धरिउ सीसेण चिहुरणीलिं णविय हउँ अज्जु माइ णिसि पीणभुउ कणयमयरयेणविठ्ठरि णिसण्णु । बहुदुक्खसहासई घडंति । णच्चतई णिरु कोडावणाई। वेयालिय फंफोवय थुणंति । महु पुणु सुविरत्तहो दुहयराइँ। मणसवणहँ जं जणि जणइ हरिसु । कर्णयमयदंडमंडियकरेण । अणवरय भमइ जगि जाहँ कित्ति । मउडग्गकोडिचुंबियकरेहिं । पडियावयाई णावइ कुमित्त । णिविडत्थवंत णं सुकइंकव्व । सीहासणि हउँ आसीणु जहिं । मई मिच्छासिविणउ वज्जरिउ । मई माई महारी विण्णविय । सिविणेई सउहयलहो झत्ति चुउ । ३. A संझापोमणिहि। १३. १. ST सहि । २. ST पप्फावय । ३. ST णिवसुहयराई । ४. S मणिकणय । ५. T बहु। ६.S सूणइ कव्व, T सुकयकव्व । ७. S ता अम्माएवि पढ़क्क तहिं । ८. A माय । ९. T सिविण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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