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________________ १० १० १५ ४० बी भूमि मोत्तियहि सुखंचिय बारि रायसोवाणविसेसिय मरगयचारुरयणेसं सिद्धी णीलरयणजालेहि पसाहिय विमजालसिलायलि घट्ठी जंबूणयकयकीरविसेसिं पउमरायमणिणियरिं बद्धी चंदकंतिसिलरयणिहि धाम संपत्तउ अट्ठमु धरणियलु हउँ पावयम्मु मयणिं डिउ सव्वंगु मज्झ रोमंचियउ सव्वंगु बप्प वेवइ वलइ पेच्छिवि तहि पियघरपंगणउ अद्धद्धदुवार विणिग्गयए चामीयरदंडयधारियए णं फेणिं पहियउ णवं कमलु हउँ अवलंबमाणु गयउ मुहसासवासवासिउ सुरहि अच्छिउडहिँ पीयउ रूवरसु तणुसिं देहहो जाय दिहि दिट्ठी सुंदर सवडमुहिय घत्ता—तहि ँ मंदिरे अइसुंदरे महु कंपइ मइ एवहि जसहरचरिउ तं मम्मणु से सउि भणिउ ' हावभावविब्भमफुरिउ सो मज्झँ खीणु ते तुंग थण सो सामवण्णु तं मुद्धमुहु Jain Education International ४ णं माइकुसुमोहिं अंचिय | पउमरायमणि तइय विहूसिय । भूमि चत्थी तेयाविद्धी । पंचम महि बहुसोहा सोहिय । णं विसम्में कय महि छट्ठी । जहिँ ठिय हंस मोर सविसेसं । सत्तम महि कय कम्मविसुद्धी । अट्टम महि गहचक्का णाम । सत्त वि भूमिउ दिट्ठउ || मइँ णं णरएसु पइट्ठउ ॥ ४ ॥ ५ महु तो विणणउ कम्ममलु । सव्वंगु घरणिणेहिं घडिउ । सव्वंगु सेयसंसिंचियउ । णं संविससप्पदट्ठउ चलइ । णं लद्ध मइँ आलिंगणउ । भासाकुसलइ सविणायणयए । जयकारिहउँ पडिहारियए । सियचीरिं ढंकिय पाणियलु । fe जाणमि हयदइविं हर्यं । आलाउ घाणु सुइसुक्खणि हि । मुहरसु लद्धउ जीहइ सरसु । पिययम पंचिदियसुक्खणिहि । छणवासररयणीयर मुहिय । घत्ता - औलोयणु संभासणु दाणु संगु वीसासु वि ।। पियमेलणु रइकीलणु जं महु तं णउ कासु वि ॥ ५ ॥ तं हिरु महुरु मणहरु मणिउ | तं हसिउ रमिउ रइरसभरिउ । ते दीह णयण हयमणुयमण । सुम तो णावइ गिद्द महु | ४. १. T दुविध । २. ST संसुद्धी । ३. ST वसुसोहें । ४. ST विद्धी । ५. AP धामा । ६. AP णामा । ७. T एवहु जंपइ तणु कंपइ णं णरएसु पइट्ठउ । ५. १. P सविसु सप्पु । २. T नवकमलदलु । ३. S किं । ४. A खलिउ । ५. T तणुफासें । ६. ST अवलोयणु । ६. १. T सणियं सणियं । २. A महुरु गहिरु । ३. S मज्झु खामु । ४. AP णिंद । [ २.४. १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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