________________
पद्य ७-९]
जीवाधिकार
दर्शनके चार भेद और उसका लक्षण चतुर्धा दर्शनं तत्र चक्षुषोऽचक्षुषोऽवधेः ।
केवलस्य च विज्ञेयं वस्तु-सामान्य-वेदकम् ॥ ७ ।। 'उस उपयोग लक्षणमें दर्शनोपयोग चक्षुदर्शन-अचक्षुर्दर्शन-अवधि-दर्शन-केवल-दर्शन रूप चार प्रकारका है और उसे वस्तुसामान्यका वेदक-वस्तुके अस्तित्व जैसे सामान्य रूपका ज्ञाता-जानना चाहिए-यही उसका लक्षण है, जो उसके चारों भेदोंमें व्याप्त है।'
व्याख्या-उपयोगके जिन दो भेदोंका पिछले पद्यमें उल्लेख है उनमें से दर्शनोपयोगको यहाँ १. चक्षुर्दर्शन, २. अचक्षुर्दर्शन, ३. अवधिदर्शन, ४. केवलदर्शन रूप चार प्रकारका बतलाया है और उसका लक्षण 'वस्तुसामान्यवेदक' दिया है, जिसे आकारादि-विपयक किसी विशेष पृथक व भेद कल्पनाके बिना वस्तुके सामान्य रूपका ग्राहक समझना चाहिए । इसीसे सर्वार्थसिद्धिकार श्री पूज्यपादाचार्यने दर्शनको 'निराकार' और ज्ञानको साकार लिखा है।
नेत्र इन्द्रियके द्वारा वस्तुके सामान्य अवलोकनको 'चक्षुर्दर्शन', अन्य इन्द्रियों तथा मनके द्वारा वस्तुके सामान्य अवलोकनको 'अचक्षुदर्शन; अवधिज्ञानके पूर्व होनेवाले सामान्य अवलोकनको ‘अवधिदर्शन' और केवलज्ञानके साथ होनेवाले सामान्य अवलोकनको 'केवलदर्शन' कहते हैं।
ज्ञानका लक्षण और उसके आठ भेद मतिः श्रुतावधी ज्ञाने मनःपर्यय-केवले । सज्ज्ञानं पञ्चधावाचि विशेषाकारवेदनम् ।।८।। मत्यज्ञान-श्रुताज्ञान-विभङ्गज्ञाग-भेदतः ।
मिथ्याज्ञानं त्रिधेत्येवमष्टधा ज्ञानमुच्यते ॥६॥ ( ज्ञानोपयोगमें ) मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवलज्ञान यह पाँच प्रकारका ज्ञान (जिनेन्द्रदेवके द्वारा) 'सम्यग्ज्ञान' कहा गया है और वह वस्तुके विशेषाकारवेदनरूप है-यही उसका लक्षण है, जो उसके पाँचों भेदोंमें व्याप्त है ।।८।। मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान, विभंग-ज्ञानके भेदसे मिथ्याज्ञान तीन प्रकारका है। इस तरह ज्ञानोपयोग (पाँच सम्यग्ज्ञान और तीन मिथ्या ज्ञान रूप ) आठ प्रकारका कहा जाता है।'
व्याख्या-इन दोनों पद्योंमें ज्ञानोपयोगको अष्टभेदरूप बतलाते हुए उसके मुख्य दो भेद किये हैं-एक सम्यकज्ञान, दूसरा मिथ्याज्ञान । सम्यकज्ञानके मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान ऐसे पाँच भेद दर्शाये हैं और मिथ्याज्ञानको मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञानके भेदसे त्रिभेद रूप प्रकट किया है। साथ ही, ज्ञानोपयोगका लक्षण वस्तुके विशेषाकार-वेदनको सूचित किया है, जो कि वस्तुमात्र सामान्य-ग्रहणका प्रतिपक्षी है ।
१. साकारं ज्ञानमनाकारं दर्शनमिति । (२-९) । २. आभिणिसूदेधिमणकेवलाणि णाणाणि पंचभेयाणि । कुमदिसुदविभंगाणि य तिण्णि वि णाणेहिं संजुत्ते ॥४१॥ -पंचास्तिकाय। ३. व्या त्रिधेत्येवं केवले । ४. व्या सज्ञानं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org