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अहं
माष्यका मंगलाचरण योगानलमें जला कर्म-मल, किया जिन्होंने आत्म-विकास, भव-बन्धनसे छूट निराकुल करते जो लोकाग्र-निवास । उन सिद्धोंको सिद्धि-अर्थ में वन्दूँ धार. हृदय उल्लास, मंगलकारी ध्यान जिन्होंका, महागुणोंके जो आवास ।। १ ।। मोह-विघ्न-आवरण नाश जिन, पाया केवलज्ञान अपार, सब जीवोंको मोक्ष मार्गका दिया परम उपदेश उदार । जिनकी दिव्य-ध्वनिसे जगमें तीर्थ प्रवर्ता हुआ सुधार, उन अर्हतोंको प्रणमूं मैं भक्ति-भावसे वारंवार ॥२॥ योग-सार-प्राभृत है अनुपम, सिद्धि-सौख्यका जो आधार, तत्त्वोंका अनुशासन जिसमें, कहें जिसे 'परमागम-सार' । योगिराज-निःसंग-अमितगति-रचित जिनागमके अनुसार, व्याख्या सुगम करूँ मैं उसकी, निज-परके हितको उर धार ।। ३ ।।
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