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________________ स्थिति ४० योगसार-प्राभूत किस संयमसे किसके द्वारा कर्मकी निर्जरा ज्ञानकी आराधना ज्ञानको, अज्ञानकी होती है ११९ अज्ञानको देती है कौन योगी कर्मरजको स्वयं धुन डालता है १२० ज्ञानके ज्ञात होनेपर ज्ञानी जाना जाता है १२८ लोकाचारको अपनानेवाले योगीका ज्ञानानुभवसे हीनक अर्थज्ञान नहीं ___ संयम क्षीण होता है. १२० बनता अहं द्वचनकी श्रद्धा न करनेवाला सुचारित्री जिस परोक्षज्ञानसे विषयकी प्रतीति उससे । ___भी शुद्धिको नहीं पाता ज्ञानीकी प्रतीति क्यों नहीं ? १२६ जिनागमको न जानता हुआ संयमी अन्धे- जिससे पदार्थ जाना जाय उससे ज्ञानी । के समान ___ न जाना जाय, यह कैसे ? १२६ किसका कौन नेत्र १२१ वेद्यको जानना वेदकको न जानना आगम प्रदर्शित सारा अनुष्ठान किसके आश्चर्यकारी निर्जराका हेतु १२२ ज्ञेयके लक्ष्यसे आत्माके शुद्धरूपको जानअज्ञानी-ज्ञानीके विषय-सेवनका फल १२२ कर ध्यानेका फल कर्मफलको भोगते हए किसके बन्ध और पूर्वकथनका उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण १३० किसके निर्जरा १२२ आत्मोपलब्धिपर ज्ञानियोंकी सुखनिष्किचन-योगी भी निर्जराका अधिकारी १२३ स्थिति १३१ विविक्तात्माको छोड़कर अन्योपासककी आत्मतत्त्वरतोंके द्वारा परद्रव्यका त्याग १३१ १२३ विशोधित ज्ञान तथा अज्ञानकी स्थिति १३१ स्वदेहस्थ-परमात्माको छोड़कर अन्यत्र निर्मल-चेतनमें मोहके दिखाई देनेका देवोपासककी स्थिति १२३ हेतु कौन कर्म-रज्जुओंसे बँधता और कौन . शुद्धिके लिए ज्ञानाराधनमें बुद्धिको छूटता है लगानेकी प्रेरणा प्रमादी सर्वत्र पापोंसे बँधता और अप्र- निर्मलताको प्राप्त ज्ञानी अज्ञानको नहीं। ___ मादी छूटता है _ अपनाता १३२ स्वनिर्मल तीर्थको छोड़कर अन्यको भजने- विद्वान् के अध्ययनादि कार्योंकी दिशाका । वालोंकी स्थिति निर्देश १३३ स्वात्मज्ञानेच्छुकको परीपहोंका सहना योगीका संक्षिप्त कार्यक्रम और उसका आवश्यक १२५ १३३ सुख-दुःखमें अनुबन्धका फल १२५ आत्मशुद्धिका साधन आत्मज्ञान, अन्य ७. मोक्षाधिकार नहीं १२६ मोक्षका स्वरूप १३५ परद्रव्यसे आत्मा स्पृष्ट तथा शुद्ध नहीं आत्मामें केवलज्ञानका उदय कब होता होता है स्वात्मरूपकी भावनाका फल परद्रव्यका दोषोंसे मलिन आत्मामें केवलज्ञान त्याग _१२६ उदित नहीं होता १३६ आत्मद्रव्यको जाननेके लिए परद्रव्यका मोहादि-दोषोंका नाश शुद्धात्मध्यानके जानना आवश्यक बिना नहीं होता १३६ जगत्के स्वभावकी भावनाका लक्ष्य १२७ ध्यान-वज्रसे कर्मग्रन्थिका छेद अतीएक आश्चर्य की बात १२७ वानन्दोत्पादक १३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001840
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Tattva-Nav
File Size19 MB
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