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योगसार-प्राभूत
[अधिकार ६ इस प्रकार पर-द्रव्यके संग-प्रसंगसे रहित हुआ कर्मोकी निर्जरा करनेगाला योगी चंचल इन्द्रिय समूहको यथेष्ट ( अथवा पर्याप्त ) अन्तर्मुख करके और विशुद्ध-दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वभाव रूप आत्माका ध्यान करके उस शाश्वत ज्योतिरूप परमात्मपदको प्राप्त होता है जिसकी कोई उपमा नहीं।'
व्याख्या इस पद्यमें छठे अधिकारका उपसंहार करते हुए कर्मोकी निर्जरा करनेवाले योगीके स्वरूपको, ध्यान विषयको और ध्यानके फलको संक्षेपमें स्पष्ट किया गया है। योगीका स्वरूप है परद्रव्योंके संग-प्रसंगसे अलग होकर इन्द्रियोंको अन्तर्मुख करनेवाला । इस योग्यता-सम्पादनके साथ उसके ध्यानका विषय है सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वभावको लिये हुए शुद्ध आत्मा और इस ध्यानका अन्तिम फल है शाश्वत ज्योति स्वरूप अनुपम परमात्म-पदकी प्राति ।
इस प्रकार श्री अमितगति-निःसंग योगिराज-विरचित योगसार-प्राभृतमें निर्जरा
अधिकार नामका छठा अधिकार समाप्त हुआ ॥६॥
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