________________
पद्य ३४-३८] निर्जराधिकार
१२९ भेद है, जो कि संज्ञा (नाम ), संख्या, लक्षण तथा प्रयोजनादिके भेदकी दृष्टि से हुआ करता है, जैसा कि स्वामी समन्तभद्रके निम्न वाक्यसे प्रकट है:
संज्ञा-संख्या-विशेषाच्च स्वलक्षण-विशेषतः। प्रयोजनादि-भेदाच्च तन्नानात्वं न सर्वथा ॥-देवागम ७२ ।
ज्ञानानुभवसे हीनके अर्थज्ञान नहीं बनता ज्ञानं स्वात्मनि सर्वेण प्रत्यक्षमनुभूयते ।
ज्ञानानुभवहीनस्य नार्थज्ञानं प्रसिद्धथति ॥३६॥ 'सबके द्वारा अपने आत्मामें ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव किया जाता है। जो ज्ञानके अनुभवसे रहित है उसके पदार्थका ज्ञान सिद्ध नहीं होता"
व्याख्या-सभी प्राणी किसी भी इन्द्रियके द्वारा अपने आत्मामें ज्ञानका अनुभव करते हैं, यह प्रत्यक्ष देखनेमें आता है। जिसे अपने में कुछ भी ज्ञानका अनुभव नहीं होता उसके किसी भी पदार्थका कोई ज्ञान नहीं बनता। छुईमुई ( लाजवन्ती) नामका पौधा जब स्पर्शन-इन्द्रियके द्वारा यह महसूस करता है कि उसको किसीने छुआ-उसपर कोई आपत्ति आयी तो वह अपनेको संकुचित कर लेता अथवा मृतरूपमें प्रदर्शित करता है, इससे उसके स्पर्श-विषयक अर्थज्ञानका होना पाया जाता है और इसलिए उसमें ज्ञान-गुण धारक ज्ञानीका अस्तित्व सिद्ध होता है--चाहे वह ज्ञान कितनी ही थोड़ी मात्रामें विकसित क्यों न हो।
जिस परोक्षज्ञानसे विषयको प्रतीति उससे ज्ञानीको प्रतीति क्यों नहीं ?
प्रतीयते परोक्षण ज्ञानेन विषयो यदि ।
सोऽनेन परकीयेण तदा किं न प्रतीयते ॥३७॥ 'परोक्ष ज्ञानके द्वारा यदि विषय प्रतीत किया जाता है तो इस परकीय ( परोक्ष ) ज्ञानके द्वारा ज्ञानी आत्माको प्रतीति क्यों नहीं होती ?' . व्याख्या-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल इन पाँच सम्यग्ज्ञानोंमें आदिके दो ज्ञान परोक्ष ज्ञान कहे जाते हैं। इन परोक्ष ज्ञानोंसे जब इन्द्रियोंका विषय-समूह प्रतीतिगोचर होता है तब आत्मा जो ज्ञानका विषय ज्ञेय है वह इस परोक्ष ज्ञानके द्वारा क्यों प्रतीति-गोचर नहीं किया जाना चाहिए ? किया जाना ही चाहिए। ज्ञेय होनेसे वह भी ज्ञान अथवा ज्ञानीका विषय है-भले ही परोक्ष रूपमें क्यों न हो।
जिससे पदार्थ जाना जाय उससे ज्ञानी न जाना जाय, यह कैसे ?
येनार्थो ज्ञायते तेन ज्ञानी न ज्ञायते कथम् ।
उद्योतो दृश्यते येन दीपस्तेन तरां न किम् ॥३८॥ "जिसके द्वारा पदार्थ जाना जाता है उसके द्वारा ज्ञानी (ज्ञाता) कैसे नहीं जाना जाता? जिसके द्वारा उद्योत (प्रकाश ) देखा जाता है उसके द्वारा क्या दीपक नहीं देखा जाता?देखा ही जाता है।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org