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________________ निर्जराधिकार निर्जराका लक्षण और दो भेद पूर्वपार्जित - कर्मैकदेशसंक्षय- लक्षणा । निर्जरा जायते द्वेधा पाकजापाकजात्वतः ॥ १ ॥ 'पूर्वोपार्जित कर्मोंका एक देशक्षय जिसका लक्षण है वह निर्जरा पाकजा तथा अपाकजाके भेदसे दो प्रकारकी होती है ।' व्याख्या - निर्जरा अधिकारका प्रारम्भ करते हुए यहाँ सबसे पहले निर्जराका लक्षण दिया है और वह लक्षण है 'पूर्वोपार्जित कर्मका एकदेश विनाश' । पूर्वोपार्जित कर्मों में पूर्व जन्म में किये तथा आत्माके साथ बन्धको प्राप्त हुए कर्म ही नहीं किन्तु इस जन्म में भी वर्तमान कालसे पूर्व किये तथा बन्धको प्राप्त हुए कर्म भी शामिल हैं । और एकदेश संक्षयका अर्थ है 'आंशिक विनाश' - पूर्णतः विनाश नहीं। क्योंकि कर्मोंके पूर्णतः विनाश होनेका नाम तो है 'मोक्ष' – निर्जरा नहीं। जबतक नये कर्मका आस्रव नहीं रुकता और बन्ध-हेतुओंका अभाव नहीं होता तबतक निर्जरा बनती ही नहीं । उक्त निर्जराके दो भेद हैं- एक 'पाकजा', दूसरा 'अपाकजा' । इन दोनोंका स्वरूप अगले पद्य में दिया है । पाकजा-अपाकजा निर्जराका स्वरूप प्रक्षयः पाकजातायां पक्वस्यैव प्रजायते । निर्जरायामपक्वायां पक्वापक्वस्य कर्मणः ||२|| 'पाकजा निर्जरामें पके हुए कर्मका ही विनाश होता है । अपाकजा निर्जरामें पके- अपके दोनों प्रकारके कर्मोंका विनाश होता है ।' व्याख्या - 'पाकजा निर्जरा' वह है जिसमें पके हुए फल देनेको उद्यत हुए- कर्मोंका ही विनाश होता है और 'अपाकजा निर्जरा' वह कहलाती है जिसमें पके हुए, ( कालप्राप्त. ) तथा बिना पके हुए ( अकालप्राप्त) दोनों प्रकारके ही कर्मोंका विनाश होता है । Jain Education International अपाकजा निर्जराको शक्तिका सोदाहरण निर्देश शुकशुका यथा वृक्षा दह्यन्ते दव- वह्निना । पक्वापक्वास्तथा ध्यान- प्रक्रमेणाघसंचयाः || ३|| 'जिस प्रकार दावानल के द्वारा सूखे-गीले वृक्ष जल जाते हैं उसी प्रकार ध्यानके प्रक्रमणसेप्रज्वलनसे-पक्के कच्चे कर्म समूह भस्म हो जाते हैं ।' १. कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः । त० सूत्र १० -२ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001840
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Tattva-Nav
File Size19 MB
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