SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ संवराधिकार संवरका लक्षण और उसके दो भेद कल्मषागमनद्वार-निरोधः संवरो मतः । भाव- द्रव्यविभेदेन द्विविधः कृतसंवरैः ॥ १ ॥ 'जो कर्मका संवर कर चुके हैं उनके द्वारा कल्मषोंके - कपायादि कर्ममलोके -आगमनद्वारोंका निरोध ( रोकना ) 'संवर' माना गया है और वह भाव द्रव्यके भेदसे दो प्रकारका कहा गया है - एक भावसंवर, दूसरा द्रव्यसंवर ।' व्याख्या - संवराधिकारका प्रारम्भ करते हुए यहाँ सबसे पहले संवर तत्त्वका लक्षण दिया है और फिर उसके द्रव्यसंवर तथा भावसंवर ऐसे दो भेद किये गये हैं । 'कल्मपोंके आगमन-द्वारोंका निरोध' यह संवरका लक्षण है । इसमें 'कल्प' शब्द कषायादि सारे कर्म-मलोंका वाचक है और 'आगमनद्वार' शब्द आत्मामें कर्म-मलोंके प्रवेशके लिए हेतुभूत जो मन-वचन-कायका व्यापार रूप आस्रव है उसका द्योतक है । इसीसे मोक्ष - शास्त्र में सूत्र रूप से 'आस्रवनिरोधः संवरः' इतना ही संवरका लक्षण दिया है । Jain Education International भाव तथा द्रव्य-संवरका स्वरूप रोधस्तत्र कषायाणां कथ्यते भावसंवरः । दुरितास्रव विच्छेदस्तद्रोधे द्रव्यसंवरः || २ || 'संवरकी उक्त भेद-कल्पनामें कषायोंका निरोध 'भावसंवर' कहलाता है और कषायोंके निरोधपर जो ज्ञानावरणादि द्रव्य-कर्मोंके आस्रव ( आगमन) का विच्छेद होता है वह 'द्रव्यसंवर' कहा जाता है ।' व्याख्या - पिछले पद्य में संवरके जिन दो भेदोंका नामोल्लेख किया गया है इस पद्य में उनका स्वरूप दिया गया है। क्रोधादिरूप कपायोंके निरोधको 'भावसंवर' बतलाया है। और कषायोंका निरोध ( भावसंवर ) होनेपर जो पौद्गलिक कर्मोंका आत्म-प्रवेश रूप आस्रव रुकता है उसे 'द्रव्यसंवर' घोषित किया है । कषाय और द्रव्यकर्म दोनोंके प्रभाव से पूर्ण शुद्धि कषायेभ्यो यतः कर्म कषायाः सन्ति कर्मतः । ततो द्वितयविच्छेदे शुद्धिः संपद्यते परा ॥ 11 'चूँकि कषायोंसे कर्म और कर्मसे कषाय होते हैं अतः दोनोंका विनाश होनेपर ( आत्मा में ) परम शुद्धि सम्पन्न होती है ।' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001840
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Tattva-Nav
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy