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________________ ५०] [ मूलाधारे वृत्त्यावृतो ग्रामस्तस्मिन्नेकरात्रं वसन्ति तत्रैकयैव रात्र्या सर्वसंवेदनात्, चतुर्गोपुरोपलक्षितं नगरं तत्र पंचदिवसं वसन्ति पंच दिनानि नयन्ति यतः पंचदिवस: सर्वतीर्थादियात्रायाः सिद्धिरुत्तरत्र ममत्वदर्शनात, धीरा धैर्योपेताः, श्रमणा:, प्रासुकविहारिणः सावद्यपरिह रणशीलाः, विविक्ते स्त्रीपशुपांडकवजिते देश एकान्ते प्रच्छन्ने वसंतीत्येवं शीला विविक्तैकांतवासिनः, यतो विविक्तकांतवासिनो यतश्च निरवद्याचरणशीला यतो ग्राम एकरात्रिवासिनो नगरे पंचाहर्वासिनश्चोत्तरत्रौद्दे शिकादिदर्शनान्मोहादिदर्शनाच्च न वसंतीति ॥७॥ एकान्तं मृगयतामेतेषां कथं सुखमित्याशंकायामाह एगंतं मग्गंता सुसमणा वरगंधहत्थिणो धीरा । सुक्कज्झाणरवीया मुत्तिसुहं उत्तमं पत्ता ॥ ७८८ ।। एकांतमेकत्वं विविक्त मृगयमाणा अन्वेषयंतः सुश्रमणा सुतपसः वरगंधहस्तिन इव धीराः शुक्लध्यानरतय उत्तम प्राप्ताः । यथा गंधहस्तिन एकांतमभ्युपगच्छंतः सुखं प्राप्नुवंति तथा श्रमणा एकातं मृगयमाणा अपि प्राप्ता यतः शुक्लध्यानरतय इति ॥७८८॥ कथं ते धीरा इत्याशंकायामाह आचारवृत्ति-जो बाड़ से वेष्टित है उसे ग्राम कहते हैं, उसमें एक रात्रि निवासकरते हैं, क्योंकि एक रात्रि में ही वहां का सर्व अनुभव आ जाता है। चार गोपुरों से सहित को नगर कहते हैं। वहाँ पर पांच दिवस ठहरते हैं, क्योंकि पांच दिन में ही वहां के सर्व तीर्थ आदि यात्राओं को सिद्धि हो जातो है। आगे रहने से ममत्व देखा जाता है । प्रासुक विहारी–सावध का परिहार करने में तत्पर हैं अर्थात् जन्तु रहित स्थानों में विहार करने वाले हैं। स्त्री. पशु और नपुंसक से वजित ऐसे एकान्त प्रदेश में निवास करनेवाले हैं। क्योंकि ये विविक्त एकान्तवासी होने से निर्दोष आचरणशोल हैं अतएव ग्राम में एक रात्रि और नगर में पांच दिन रहते हैं, क्योंकि अधिक रहने से औद्देशिक आदि दोष हो जाते हैं और मोह आदि भी हो जाता है, इसलिए वे अधिक नहीं रहते हैं।' एकान्त का अन्वेषण करते हुए इनको सुख कैसे होता है ? सो ही बताते हैं गाथार्थ-एकान्त को खाज करने वाले श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान धीर वे सुश्रमण शुक्ल ध्यान में रत होकर उत्तम मुक्तिसुख को प्राप्त कर लेते हैं । ॥७८८॥ आचारवृत्ति-विविक्त एकान्त स्थान का अन्वेषण करते हुए वे सुश्रमण श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान धीर होते हैं और शुक्ल ध्यान में रति करते हुए उत्तम मुक्ति सुख को प्राप्त कर लेते हैं। जैसे गंधहस्तो एकान्त का आश्रय लेकर सुखी होते हैं वैसे ही महामुनि एकान्त का आश्रय लेकर सुखी होते हैं, क्योंकि वहाँ पर वे शुक्ल ध्यान को ध्याते हैं। - वे धीर क्यों हैं ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं १. यह उत्कृष्ट चर्या है । वैसे आगे दश स्थिति कल्प का लक्षण है कि एक महीने तक एक स्थान पर वास करना। इसलिए सर्व संघ या सर्व मुनियों के लिए इसको एकान्त से नहीं लगाना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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