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अनगारभावनाधिकारः]
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धर्ममुनमक्षमादिलक्षणमनुत्तरमद्वितीयमिमं कर्ममलपटलपाटनसमर्थ जिनाख्यातं गृह णन्ति महाब्रतानि च संवेगजातहर्षाः, अथवा धर्मोयं कृत्वा गृह णन्ति महाव्रतानि पंच । अनेन तात्पर्येण लिंगशुद्धिाख्याता वेदितव्या ॥७८०॥ कानि तानि महाव्रतानीत्याशंकायां व्रतशुद्धिं च निरूपयंस्तावद्वतान्याह
सच्चवयणं अहिंसा प्रवत्तपरिषज्जणं च रोचंति।
तह बंभचेरगुत्ती परिग्गहादो विमुत्ति च ॥७८१॥ सत्यवचनं हिंसाविरतिं अदत्तपरिवर्जनं रोचन्ते सम्यगभ्युपगच्छन्ति तथा ब्रह्मचर्यगुप्ति परिग्रहाद्विमुक्ति च लिंगग्रहणोत्तरकालं प्रतीछन्तीति ।।७५१
यद्यपि व्यतिरेकमुखेनावगतः प्राणिवधादिपरिहारस्तथापि पर्यायाथिकशिष्यप्रतिबोधनायान्वयः माह
पाणिवह मुसावादं अवत्त मेहुण परिग्गहं चेव । तिविहेण पडिक्कते जावज्जीवं दिढषिदीया ॥७८२॥
आचारवृत्तिः-ये उत्तम क्षमा आदि लक्षण वाले धर्म अद्वितीय हैं, अर्थात् इनके सदृश अन्य कोई दूसरा धर्म नहीं हैं । ये कर्ममल समूह को नष्ट करने में समर्थ हैं। इस प्रकार से संवेग भाव से जिनको हर्ष उत्पन्न हो रहा है अथवा 'यह धर्म है', ऐसा समझकर जो पाँच महा व्रतों को स्वीकार करते हैं उनके चारित्रशुद्धि होती है। इस तात्पर्य से यहाँ पर लिंगशुद्धि का व्याख्यान हआ समझना चाहिए। अर्थात् लिंग शुद्धि के अन्तर्गत ही दर्शनशुद्धि, ज्ञान तपशुद्धि और चारित्रशुद्धि होती है। पूर्व में संस्कार का अभाव, आचेलक्य, लोच, पिच्छिका ग्रहण और दर्शनज्ञान, चारित्र तथा तप का सद्भाव इसी का नाम लिंग शुद्धि है, ऐसा कहा है। इसीलिए दर्शन आदि शुद्धियाँ उससे अन्तर्भूत हो जाती हैं।
वे महाव्रत कौन हैं ? ऐसी आशंका होने पर तथा व्रतशुद्धि का निरूपण करते हुए पहले व्रतों को कहते हैं
गाथार्थ-सत्य वचन, अहिंसा, अदत्त त्याग, ब्रह्मचर्य, गुप्ति और परिग्रह से मुक्ति इन व्रतों की रुचि करते हैं। ॥७८१ ॥
आचारवृत्तिः-लिंग ग्रहण के अनन्तर वे मुनि सत्य वचन को, अहिंसा विरति को और अदत्तवस्तु के वर्जन रूप व्रत को स्वीकार करते हैं तथा ब्रह्मचर्य व्रत और परिग्रह के त्याग व्रत को स्वीकार करते हैं।
यद्यपि व्यतिरेकमुख से प्राणिवध आदि के परिहार का ज्ञान हो गया है तो भी पर्यायाथिक शिष्यों को प्रतिबोधित करने के लिए अन्वय मुख से कहते हैं।
____ गाथार्थ-प्राणिवध, असत्यवचन, अदत्तग्रहण, मैथुन सेवन और परिग्रह इनका दृढ़ बुद्धि वाले पुरुष जीवन पर्यन्त के लिए मन-वचन-काय से त्याग कर देते हैं।॥७८२ ।।
१. गाथा ७७३ की टीका में
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