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________________ [ मूलाचार सध्वजगस्स हिदकरो धम्मो तित्थंकरेहि अक्खादो। धण्णा तं एडिवण्णा विसुद्धमणसा जगे मणुया ।।७५२।। सर्वस्य जगतो भव्यलोकरय हितकरो धर्म उत्तमक्ष मादिलक्षणरतीर्थकर र ख्यात: प्रतिपादितरत धर्म ये प्रतिपन्नास्तं ध मंमधिष्टिता ये पूरुषा विशुद्धमनसा शुद्धभावेन ते धन्याः पुण्यवतः कृतार्था जगतीति ।।७५२॥ धर्मानुरागे कारणमाह जेणेह पाविदव्वं कल्लाणपरंपरं परमसोक्खं । सो जिणदेसिदधम्म भावेणुववज्जदे पुरिसो ।।७५३॥ येनेह-येन जीवेनास्मिल्लोके कल्याणपरंपरा मांगल्यनरन्तयं परमसौख्यं प्राप्तव्यं स जीवो जिनदेशितं तीर्थक राख्यातं धर्म भावेनोपद्यते पुरुषः पपरमार्थतो धर्म श्रद्दधाति सेवते ----पापक्रियां मनागपि नाचरतीति । ७५३॥ 'धर्मस्य विकल्पानाहखंतीमहवअज्ज्वलाघवतवसंजयो अकिंचणदा । भचेरं सच्चं चाप्रोथ दसधामा ।।७५४॥ क्षान्त्यार्जवमार्दवलाघव'तपःसंयमा आकिंचन्यं तथा ब्रह्मचर्य सत्यं त्यागश्च धर्मो दशविधो भवति ज्ञातव्य इति ।।७५४।। गाथार्थ-तीर्थंकरों द्वारा कथित धर्म सर्वजगत् का हित करनेवाला है। विशुद्ध मन से उसका आश्रय लेनेवाले मनुष्य जगत् में धन्य हैं ।।७५२।। आचारवृत्ति-तीर्थंकरों के द्वारा प्रतिपादित क्षमा आदि उत्तम धर्म भव्य जीवों का हित करने वाला है। जिन पुरुषों ने ऐसे धर्म का विशुद्ध मन से अनुष्ठान किया है, वे इस जगत् में धन्य हैं, पुण्यशाली हैं, वे कृतार्थ हो चुके हैं। धर्मानुराग में कारण को कहते हैं गाथार्थ-जिसे इस जगत् में कल्याणों की परम्परा और परम सौख्य प्राप्त करना है वह पुरुष भाव से जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित धर्म को स्वीकार करता है ॥ ३॥ अचारयत्ति --जिस जीन को इस जगत् में निरन्तर ही मंगल और परसा सुख प्राप्त करना है, वह जीव भाव से तीर्थकर द्वारा कथित धर्म को प्राप्त करता है। अर्थात् परमार्थ रूप से उस धर्म का श्रद्वान करता है, उसका सेवन करता है और किचित् मात्र भी पाप क्रिया का आचरण नहीं करता है, यह अभिप्राय है। धर्म के भेदों को बताते हैं गाथार्थ-क्षमा, मार्दव, आर्जव, लाघव, तप, संयग, आकिंचन्य, तथा ब्रह्मचर्य, सत्य और त्याग ये दश धर्म हैं। टीका सरल है। १ लिङ्गधर्मस्य क० २ लाघवं शौचाचारः (क० टि०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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