SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बादशानुप्रेक्षाधिकारः । हेढा मज्झे उरि वेत्तासणझल्लरीमुदंगणिभो। मज्झिमवित्थारेण दु चोद्दसगुणमायदो लोगो ॥७१६॥ हेट्ठा अधःप्रदेशे मध्यप्रदेशे उपरिप्रदेशे च यथासंख्येन वेत्रासनझल्लरीमृदंगनिभः अधो वेत्रासनाकृतिमध्ये झल्लाकृतिरूवं मृदङ्गाकृतिरिति, मध्यमविस्तार प्रमाणेन चतुर्दशगुणः, मध्यमविस्तारस्यप्रमाणमेका रज्जुः सा च चतुर्दशभिर्गुणिता लोकस्यायामो भवति, वातवलयादधस्तादारभ्य यावन्मोक्षस्थानं तयोमध्य आयाम इत्युच्यते । स आयामश्चतुर्दशरज्जमात्र इति । घनाकारेण यदि पुनर्मीयते तदा त्रिचत्वारिंशदधिकत्रिशत रज्जमात्रो भवतीति ॥७१६।। तत्र'लोके जीवा: किं कुर्वन्तीत्याह तत्थ णु हवंति जीवा सकम्मणिव्वत्तियं सुह' दुक्खं । जम्मणमरणपुणग्भवमणंतभवसायरे भीमे ।।७१७॥ तत्र च लोके जीवाः स्वकर्मनिर्वत्तितं स्वक्रियानिष्पादितं सुखं दुःखं चानुभवन्ति, अनंतभवसागरे घ जन्ममरणं पुनर्भवं च पुनरावृत्ति च भीमे भयानके कुर्वन्तीत्यर्थः ॥७१७।। पुनरप्यसमंजसमाह मादा य होदि धूदा धूदा मादुत्तणं पुण उवेदि। पुरिसो वि तत्थ इत्थी पुमं च अपुमं च होइ जए ॥७१८॥ गाथार्थ-अधोलोक वेत्रासन के समान, मध्यलोक झल्लरी के समान और ऊर्ध्वलोक मृदंग के समान है । पुनः मध्यमविस्तार एक राजू से चौदहगुणे ऊँचा यह लोक है ।।७१६।। प्राचारवृत्ति-इस लोक का अधोभाग वेत्रासन-मोढ़ा के आकारवाला है, मध्यप्रदेश झल्लरी के आकार का है और ऊर्ध्व भाग ढोलक के समान है। इसका मध्यम विस्तार एक राजू है उसे चौदह से गुणा करने पर अर्थात् चौदह राजू प्रमाण इस लोक की ऊँचाई है। नीचे के वातवलय से लेकर मोक्षस्थानपर्यन्त के मध्य का जो भाग है उसे आयाम या ऊँचाई कहते हैं । अर्थात् लोक की ऊँचाई चौदह राजू है। यदि इसको घनाकार से मापेंगे तो यह लोक तीन सौ तेतालीस राजू प्रमाण होता है। इस लोक में जीव क्या करते हैं ? सो ही बताते हैं गाथार्थ-इस लोक में जीव अपने कर्मों द्वारा निर्मित सुख-दुःख का अनुभव करते हैं। भयानक अनन्त भव समुद्र में पुनः पुनः जन्म-मरण करते हैं ॥७१७।। आचारवत्ति-इस लोक में सभी जीव अपने द्वारा उपाजित शुभ-अशुभ कर्मों के द्वारा निष्पन्न हुए ऐसे सुख-दुःख को भोगते रहते हैं । इस भयंकर अनन्तरूप महासंसार सागर में जन्म-मरण का अनुभव करते हैं । अर्थात् पुनः पुनः भव ग्रहण करते हैं। पुनः लोक में जो असमंजस अवस्थाएं होती हैं, उन्हें दिखाते हैं गाथार्थ-माता पुत्री हो जाती है और पुत्री माता हो जाती है। यहाँ पर पुरुष भी स्त्री और स्त्री भी पुरुष तथा पुरुष भी नपुंसक हो जाता है ।।७१८।। १.विस्तरक २. विस्तरस्थक ३. तत्त्रयात्मके क ४. सूहदुःखक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy