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________________ पर्याप्त्यधिकारः । [ ३११ आदिशब्दः प्रत्येकमभिसंबध्यते; शंखादयः भ्रमरादयः गोभ्यादयःविकलेन्द्रियाद्वीन्द्रियाः त्रीन्द्रियाश्चतुरिन्द्रया यथासंख्येनाभिसंबध्यन्ते । एते शंखकृम्यक्षवराटकक्षल्लगंडपदादयः द्वीन्द्रिया ज्ञातव्याः, गोभीकंथपिपीलिकामत्कूणवृश्चिकयकेन्द्रगोपादयस्त्रीन्द्रिया ज्ञातव्याः, भ्रमरमधुकरीदंशकपतंगमक्षिकादयश्चतुरिन्द्रिया ज्ञातव्याः, पंचेन्द्रियास्तु जलचराः स्थलचराः खचराः सुरा नारका नराश्च ज्ञातव्या इति ॥११९२।। प्राणान् प्रतिपादयन्नाह पंचय इंदियपाणा मणवचकाया दु तिण्णि बलपाणा। आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दस पाणा ॥११६३॥ पंचेन्द्रियाणि स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि पंच प्राणा: मनोवचःकायास्तु बलरूपास्त्रयः प्राणाः, आनप्राणावुच्छासनिःश्वासलक्षण एके प्राणा, आयुर्भधारणलक्षण-पुद्गलप्रचय एके प्राणा एवमेते दश प्राणा भवन्तीति ॥११९३॥ एकेन्द्रियादीनां प्राणानां च स्वस्वामिसंबन्ध प्रतिपादयन्नाह इंदिय बल उस्सासा आऊ चदु छक्क सत्त अट्ठव। एगिदिय विलिदिय असण्णि सण्णीण णव दस पाणा ॥११६४॥ इन्द्रियं स्पर्शनेन्द्रियमेकः प्राणः, बलं कायबलं द्वितीयः प्राणः, उच्छ्वासस्तृतीयः प्राणः, आयुश्चतुथः प्राणः, एते चत्वारः प्राणा एकेन्द्रियस्य पर्याप्तस्य भवन्ति पर्याप्तिरहितस्य पुनरुच्छ्वासरहिता भवन्ति । द्वीन्द्रि आचारवृत्ति -'आदि' शब्द प्रत्येक के साथ लगा लेना चाहिए। शंख आदि द्वीन्द्रिय हैं, गोभी (कीड़े) आदि त्रीन्द्रिय हैं और भ्रमर आदि चतुरिन्द्रिय हैं । अर्थात् शंख, कृमि,कौड़ी, क्षुद्र भी गिंडोला आदि दो-इन्द्रिय जीव हैं । गोभी (कोड़ा), कुन्थु, चींटी, खटमल, विच्छ, जू, इन्द्रगोप जुगनू आदि तीन इन्द्रिय जीव हैं। भ्रमर, मधुमक्खी, डांस, पतंगे, मक्खी आदि चार इन्द्रिय जीव हैं। जलचर, थलचर, नभचर, देव, नारको और मनुष्य पंचेन्द्रिय जीव हैं। प्राणों का प्रतिपादन करते हैं . गाथार्थ-पाँच इन्द्रियप्राण, मन, वचन, काय ये तीन बलप्राण तथा श्वासोच्छ्वास प्राण और आयुप्राण मिलकर दस प्राण होते हैं ॥११६३॥ आचारवृत्ति-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच प्राण; मनोबल, वचनबल और कायबल ये तीन बलरूप प्राण तथा उच्छ्वासनिःश्वास लक्षण एक प्राण और आयु एक प्राण ये दश प्राण होते हैं । भवधारणलक्षणरूप पुद्गलप्रचय का नाम आयु है। एकेन्द्रिय आदि जीव और प्राणों के स्वस्वामी सम्बन्ध को कहते हैं-- गाथार्थ–एकेन्द्रिय के इन्द्रिय बल, उच्छवास और आयु ये चार प्राण विकलेन्द्रिय में क्रम से छह, सात और आठ, असंज्ञी के नौ और संज्ञी के दस प्राण होते हैं ।।११९४।। आचारवृत्ति-स्पर्शन इन्द्रिय एकप्राण, कायबल द्वितीय प्राण, उच्छ्वास तृतीय प्राण और आयु चतुर्थ प्राण एकेन्द्रिय पर्याप्तक के ये चार प्राण होते हैं तथा पर्याप्तिरहित के उच्छ्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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