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________________ ३१०] [मूलाचारे एवं सर्वमाक्षिप्यकेद्रियादिभेदास्तावत्प्रतिपादयन्नाह-- एइंदियादि जीवा 'पंचविधा भयवदा दु पण्णता। पुढवीकायादीदा विगला पंचेंदिया चेव ॥११६१॥४ ये एकेन्द्रियादयो जीवाः संग्रहसूत्रण सूचितास्ते पंचविधाः पंचप्रकारा एव भगवती । के ते पंचप्रकारा इत्याशंकामाह-पृथिवीकायिकादय एकः प्रकारः, विकलेन्द्रिया द्वीन्द्रिया द्वितीय:प्रकार:, त्रीन्द्रियास्तृतीयः प्रकारः, चतुरिन्द्रिया: चतुर्थः प्रकारः, तथा च पंचेन्द्रियाः पंचमः प्रकारः । पंच प्रकारा एव न षट्प्रकारा नापि चत्वार इति ॥११६१॥ पृथिवीकायादिभेदा उत्तरत्र प्रबन्धेन प्रतिपाद्यन्त इति कृत्वा 'द्वीन्द्रियादीन् प्रतिपादयन्नाह-- संखो गोभी भमरादिया दु विलिदिया मुणेदव्वा । पंचेंदिया द जलथलखचरा सरणारयणराय ॥११६२॥ इन सभी को छोड़कर पहले एकेन्द्रिय आदि भेदों का प्रतिपादन करते हैं गाथार्थ-एकेन्द्रिय आदि जीव पाँच प्रकार के हैं ऐसा भगवान् ने कहा है वे पथिवीकाय आदि एकेन्द्रिय, विकलत्रय और पंचेन्द्रिय ही हैं ।।११६१॥ आचारवत्ति-जो एकेन्द्रिय आदि जीव संग्रहसूत्र से सूचित किये गये हैं वे पाँच प्रकार के हैं ऐसा भगवान ने कहा है। वे पाँच प्रकार कौन है ? पथिवीकायिक आदि एक प्रकार है, विकलेन्द्रियों में द्वीन्द्रिय द्वितीय प्रकार है, त्रीन्द्रिय ततीय प्रकार है, चतुरिन्द्रिय चतुर्थ प्रकार है और पंचेन्द्रिय पाँचवाँ प्रकार है। ये जीव पाँच प्रकार ही हैं, न छह प्रकार हैं और न चार प्रकार हैं। पथिवीकाय आदि भेद आगे विस्तार से प्रतिपादित किये जायेंगे इसलिए यहाँ द्वीन्द्रिय आदि का प्रतिपादन करते हैं गाथार्थ-शंख, गोभी (एक प्रकार का कीड़ा) और भ्रमर आदि विकलेन्द्रिय हैं ऐसा जानना। जलचर, थलचर, नभचर, देव, नारकी और मनुष्य ये पंचेन्द्रिय हैं ॥११६२।। १.कपंचविहा। २. क संक्षेपेण द्वीन्द्रियादिभेदान । * फलटन से प्रकाशित मूलाचार की इस गाथा में अन्तर है। एइंदियादिजीवा पंचविधा भयवदा दु पण्णत्ता । पुढवीकायावीया पंचविधे इंदिया चेव ।। अर्थ--भगवान जिनेन्द्र ने एकेन्द्रिय आदि जीव पाँच प्रकार के कहे हैं। वे हैं पृथिवीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय। इस गाथा का उत्तरार्ध श्री वफेराचार्य ने बदला है तथा उसी के अनरूप टीकाकार ने टीका की है और आगे की उत्थानिका बनायी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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