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________________ पास्यधिकारः] [ ३० गत्यागतिस्वरूपं निरूप्य स्थानाधिकारं प्रतिपादयन्नाह एइंदियादि पाणा चोइस दु हवंति जीवठाणाणि । गुणठाणाणि य चोद्दस मग्गणठाणाणिवि तहेव ॥११८६॥ जीवस्थानान्याधारभूतानेकेन्द्रिय दीन् तावत् प्रतिपादयति एकेन्द्रियादय एक सूत्रं, प्राणो द्वितीयं सूत्रं चतुर्दश जीवस्थानानि भवन्ति तृतीयं सूत्रं, गुणस्थानानि चतुर्दश चतुर्थं सूत्रं, मार्गणास्थानानि चतुर्दथ भवन्ति पंचमं सूत्रं, पंचत्रिःसंग्रहस्थानसूत्रं व्याख्यायते-जीवास्तिष्ठन्ति येषु तानि जीवस्थानानि, गुणा मिथ्यात्वादयो निरूप्यन्ते येषु तानि गुणस्थानानि, जीवा मृग्यन्ते येषु यैर्वा तानि मार्गणास्थानानि इति । ॥११८६॥ अथ का मार्गणाऽऽदौ' जोवगुणमार्गणा का इत्याशंकायामाह गदिआदिमग्गणाओ परविदाओ य चोद्दसा चेव । एदेसि खलु भेदा किंचि समासेण वोच्छामि ।।११६०॥ 'गत्यादिमार्गणाश्चतुर्दश एवागमे 'निरूपिताः, चशब्दाबादरकेन्द्रियादीनि जीवस्थानानि चतुर्दश मिथ्यादृष्ट्यादीनि गुणस्थानानि चतुर्दशेत्येषां भेदान्कियतः समासेन संक्षेपेण प्रवक्ष्यामीति ॥११६०॥ गत्यागति के स्वरूप का निरूपण करके अब स्थानाधिकार का प्रतिपादन करते हैं गाथार्थ--एकेन्द्रिय आदि जीव, प्राण, चौदह जीवस्थान, चौदह गुणस्थान और चौदह ही मार्गणाएँ भी होती हैं ॥११८६॥ आचारवत्ति--जीवस्थान और उनके आधारभूत एकेन्द्रिय आदि जीवों का प्रतिपादन करते हैं उसमें एकेन्द्रिय आदि यह एक सूत्र है, प्राण दूसरा सूत्र है, चौदह जीवस्थान तीसरा सूत्र है, चौदह गुणस्थान चौथा सूत्र है, और चौदह मार्गणास्थान यह पाँचवाँ सूत्र है। 'पंचत्रि.. संग्रह' है उसमें से संग्रहस्थान सूत्र का व्याख्यान करते हैं-जीव जिनमें ठहरते हैं उन्हें जीवस्थान कहते हैं, मिथ्यात्व आदि गुणों का जिनमें निरूपण किया जाता है वे गुणस्थान कहलाते हैं, जिनमें अथवा जिनके द्वारा जीव खोजे जाते हैं उनको मार्गणास्थान कहते हैं। मार्गणा क्या हैं अथवा जीवस्थान, गुणस्थान व मार्गणाएँ कौन-कौन हैं, ऐसी आशंका होने पर कहते हैं ___गाथार्थ-गति आदि मार्गणाएँ प्रखपित की जा चुकी हैं। वे चौदह ही हैं, उनमें कितने भेद हैं इसे संक्षेप से कहूँगा ॥११६०॥ __ आचारवत्ति-गत्यादि मार्गणाएं चौदह ही हैं, ऐसा आगम में निरूपण किया गया है। 'च' शब्द से बादर एकेन्द्रिय आदि जीवस्थान चौदह हैं, मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थान चौदह हैं। इन सबके कितने-कितने भेद हैं उन्हें मैं संक्षेप से कहूँगा। • यह गाथा फलटन से प्रकाशित मूलाचार में नहीं है । १.कमार्गणादिं कृत्वा। २. क गत्यादयो मार्गणाः। ३. क प्ररूपिताः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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