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देवानां च ये संभवन्त्यो गत्यागती ते प्रवक्ष्याम्यागमबलाद् भणिष्यामीति ॥। ११६४ ॥
सव्वमपज्जत्ताणं सुहुमकायाण सव्वतेऊणं । वाऊणमसण्णीणं आगमणं तिरियमणुसेहि ॥ ११६५॥
सव्यं सर्वेषां अपज्जत्ताणं- अपर्याप्तानां, सुठुमकायाणं - - सूक्ष्म कायानां सव्वतेऊणं सर्वतेजस्कायानां, वाऊणं-वायुकायानां, असण्णीणं - असंज्ञिनाम् अत्रापि सर्वशब्दः संबन्धनीयः सर्ववायुकायानां सर्वासंज्ञिनां चागमनमागति: तिरियमणुसेहि - 'तिर्यङ मनुष्यैः । पृथिवी कायिका कायिकतेजस्कायिकवायुकायिकवनस्पतिकायिका द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपंचेन्द्रियाणां ये लब्ध्यपर्याप्तास्तेषु मध्येषु तिर्यंचो मनुष्याश्चोत्पद्यन्ते तथा पृथिवीकायिकादिवनस्पतिपर्यन्तेषु सर्वसूक्ष्मेषु पर्याप्तापर्याप्तेषु तथा तेजःकायिकवायुकायिकेषु बादरेषु पर्याप्तापर्याप्तेषु असंज्ञिषु च तिर्यङ्मनुष्या एवोत्पद्यन्ते न देवा नापि नारका न चैव भोगभूमिजा भोगमूमिप्रतिभागजाश्चेति ।।११६५॥
अतः पृथिवी कायिकादयो गत्वा क्वोत्पद्यन्त इत्याशंकायामाह -
तिहं खलु कायाणं तहेव विगलदियाण सव्वेसि । अविरुद्ध संकमणं माणुस तिरिएसु य भवेसु ॥ ११६६॥
तिन्हं – त्रयाणां खलु स्फुटं कायाणं – कायानां पृथिवीकायाप्कायवनस्पतिकायानां तहेव - तथैव इसके आगे अब शेष - तिर्यंच, मनुष्य और देवों की जो गति आगति सम्भव हैं उन्हें आगम के बल कहूँगा ।
गाथार्थ – सभी अपर्याप्तक, सूक्ष्म काय, सभी अग्निकाय, वायुकाय और असंज्ञी tai का तिर्यंच और मनुष्य गति से आना होता है ।। ११६५ ॥
[ मूलाधारे
श्राचारवृत्ति - पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, और पंचेन्द्रिय ये जो लब्ध्यपर्याप्तक होते हैं इनमें मनुष्य और तिर्यंच ही आकर जन्म लेते हैं । अर्थात् सभी लब्धि अपर्याप्त जीवों में मनुष्य और तिर्यंच ही मरकर जन्म धारण करते हैं । तथा पृथिवी से लेकर वनस्पतिपर्यंन्त सभी सूक्ष्मकायिक अपर्याप्तकों में, अग्निकायिक, वायुकायिक बादर पर्याप्तक- अपर्याप्तकों में और असैनी जीवों में तिर्यंच और मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं । इन पर्यायों में देव नारकी, भोगभूमिज और भोगभूमिप्रतिभागज जीव उत्पन्न नहीं होते हैं ।
पृथिवीकायिक आदि जीव यहाँ से जाकर कहाँ उत्पन्न होते हैं, ऐसी आशंका होने पर
कहते हैं
गाथार्थ - पृथिवी, जल, वनस्पति इन तीन कायों का तथा सर्व विकलेन्द्रियों का मनुष्य और तिर्यंच के भवों में ही आना अविरुद्ध है ।। ११६६ ॥
आचारवृत्ति - पृथिवीकाय, जलकाय और वनस्पतिकाय इन तीनों के जीव तथा सभी
१. क तियंङ मनुष्येभ्यः ।
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