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पर्याप्यधिकारः ]
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वधि : विसओ - विषयः । भवनवासिवानव्यंतरज्योतिष्काणामुत्कृष्टावधिविषयोऽसंख्याता योजनानां कोटिकोटय: निकृष्टकल्पवासिनां च मिथ्यादृष्टीनां पुनविभंगज्ञानं संख्यातयोजनविषयमसंख्यातयोजनविषयं चेति ॥ ११५३ ॥
नारकाणामवधिविषयं निरूपयन्नाह -
रयण पहाय जोयणमेयं ओहीविसओ मुणेयव्वो । पुढवीदो पुढवीदो गाऊ अद्धद्ध परिहाणी ॥। ११५४॥
रयणप्पहाय - रत्नप्रभायां प्रथमपृथिव्यां, जोयणमेयं — योजनमेकं चत्वारि गव्यूतानि, ओहीबिसयो — अवधिविषय अवधिज्ञानस्य गोचरो, मुणेयब्वो - ज्ञातव्यः । प्रथमपृथिव्यां नारकाणामवधिविषयो योजनप्रमाणं स्वस्थानमादि कृत्वा यावद्योजनमात्रं पश्यन्ति, मिथ्यादृष्टीनां विभंगज्ञानं स्तोकमात्रं ततोऽधः, पुढवीबो पुढवीबो - पृथिवीतः पृथिवीतः पृथिवीं प्रति पृथिवीं प्रति, गाऊ-गव्यूतस्य, अद्धद्ध - अर्द्धस्यार्द्धस्य परिहाणी - परिहानि: गव्यूतार्द्धस्य परिक्षयः । द्वितीयायां पृथिव्यां त्रीणि गव्यूतानि गव्यूतार्द्धं च सर्वत्र नारकाणामवधेविषय: संबन्धनीयः तृतीयायां पृथिव्यां त्रीणि गव्यूतानि चतुर्थ्यां द्वे गव्यूते साद्ध, पंचम्यां द्वे गव्यूते षष्ठ्यां गव्यूतमेकं सार्द्धं, सप्तम्यामेकं गव्यूतं सम्यग्दृष्टीनामेतन् मिध्यादृष्टीनां पुनर्विभंगज्ञानमस्मान्यूनामिति । ।। ११५४ ॥
नारकाणां तावदुपपादं प्रतिपादयन्नाह
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पढमं पुढविमसण्णी पढमं विदियं च सरिसवा जंति । पक्खी जाववु तदियं जाव चउत्थी व उरसप्पा ॥। ११५५॥
वासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों के उत्कृष्ट अवधि का विषय असंख्यात कोटिकोटि योजन है और निकृष्ट कल्पवासी देव तथा मिथ्यादृष्टि देवों के विभंगावधि का विषय संख्यात योजन व असंख्यात योजन प्रमाण है ।
नारकियों के अवधि का विषय कहते हैं
गाथार्थ - रत्नप्रभा नरक में एक योजन तक अवधि का विषय जानना चाहिए। पुनः पृथिवी - पृथिवी से आधा-आधा कोश घटाना चाहिए ।। ११५४ ।।
श्राचारवृत्ति - रत्नप्रभा नरक में अवधिज्ञान का विषय चार कोश प्रमाण है । दूसरी पृथ्वी में आधा कोश घटाने से साढ़े तीन कोश तक है, तीसरी पृथ्वी में तीन कोश तक है, चौथी
ढाई कोश तक, पांचवीं में दो कोश तक, छठी में डेढ़ कोश तक और सातवीं पृथ्वी में एक कोश प्रमाण है । यह सम्यग्दृष्टि देवों के अवधि का विषय है किन्तु मिथ्यादृष्टि देवों के विभंगावध का विषय इससे कम-कम है ।
कौन-कौन जीव किस नरक तक जाते हैं
गाथार्थ - असंज्ञी जीव पहली पृथ्वी तक, सरीसृप पहली और दूसरी पृथ्वी तक, पक्षी तीसरी पर्यंन्त एवं उरः सर्प (सरक कर चलने वाले) चौथी पृथ्वी पर्यन्त जाते हैं। सिंह पाँचवीं पृथ्वी
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