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________________ [ मूलाचारस्य २८१-२८२ २८२-२८३ २८४ २८५ २८५-२८८ २८८-२६० २६०-२६३ २६३ २६३-२६४ २६५-२६७ २६८-३०० ३००-३०१ ३०१ ३०१-३०३ नरकों में लेश्या का वर्णन ११३६ देवों में लेश्या का वर्णन ११३७-११३८ तिथंच और मनुष्यों में लेश्या का वर्णन ११३६ काम और भोग का विश्लेषण ११४० देवों में प्रवीचार का वर्णन ११४१-११४६ देवों में आहार और श्वासोच्छ्वास का काल ११४७-११४६ देव के अवधिज्ञान का विषय ११५०-११५३ नारकियों के अवधिज्ञान का विषयक्षेत्र नरकों में कौन जीव कहाँ तक उत्पन्न होता है ? ११५५-११५६ नरकों से निकलकर कौन जीव क्या होता है ? ११५७-११६४ स्थावर और विकलत्रय जीवों का कहाँ जन्म होता है ? ११६५-११६६ असंख्यात वर्ष की आयु वाले जीवों में कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं और कहाँ जाते हैं ? ११७०-११७१ शलाकापुरुषों में कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? ११७२ मिथ्यादृष्टियों का उत्पाद कहाँ होता है ? ११७३-११७७ जिनलिंगधारी मिथ्यादृष्टि स्वर्गों में कहाँ तक उत्पन्न होते हैं ? ११७७ नवग्रैवेयक के आगे उत्पन्न होनेवाले जीवों का निर्देश ११७८ देवगति से आकर कौन जीव कहाँ उत्पन्न होते हैं ? ११७६-११८० कौन देव शलाकापुरुष नहीं होते हैं ? ११८१-११८४ कौन जीव कहाँ से आकर नियमपूर्वक मोक्ष प्राप्त करते हैं ? ११८५-११८६ निर्वाण प्राप्त करनेवाले जीव कौन हैं और निर्वाण में कैसे सुख का अनुभव करते हैं ? ११८७-११८८ स्थानाधिकार के अन्तर्गत मार्गणा तथा जीवसमास आदि का वर्णन ११८६-११६० एकेन्द्रियादि के भेदों का वर्णन ११६१-११६२ दश प्राणों के नाम तथा उनके स्वामी ११६३-११६४ जीवसमासों का वर्णन ११६५-११६६ - चौदह गुणस्थानों के नाम ११६७-११६८ । चौदह मार्गणाओं के नाम ११६६-१२०० ..किस गति में कितने जीवसमास होते हैं ? १२०१ .. मार्गणाओं में जीवसमासों का अन्वेषण १२०१ मार्गणाओं में गुणस्थानों का वर्णन १२०२ ३०३ ३०३-३०४ ३०४-३०५ ३०५-३०६ ३०६-३०७ ३०८-३०६ ३०६-३१० ३१०-३११ ३११-३१२ ३१२-३१३ ३१३-३१७ ३१८ ३१६-३२० ३२१-३२४ ३२४-३२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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