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[मूलाचारे
एइंदियविलिदियअसणिणो तिण्णि होंति असुहाओ।
संखादीदाऊणं तिणि सुहा छप्पि सेसाणं ॥११३६॥ एई दिय-एकेन्द्रियाणां पृथिवीकायिकादिवनस्पतिकायिकान्तानां, विलिन्दिय-विकलेन्द्रियाणां द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणाम्, असण्णिगो-असंज्ञिनां शिक्षाऽऽलापादिग्रहणायोग्यानां पंचेन्द्रियाणांतिग्नितिस्रः, होंति-भवन्ति, असुहाओ-अशुभाः कापोतनीलकृष्णलेश्याः। संखादीदाऊणं-संख्यातीतायुष्काणां भोगभूमिजानां प्रतिभागजानां च, तिण्णि-तिस्रः शुभाः तेजःशुक्लपपलेश्याः, छप्पि-षडपि कापोतनीलकृष्णतेजःपद्मशुक्ललेश्याः, सेसाणं- शेषाणां कर्मभूमिजानां कर्मभूमिप्रतिभागजानां पंचेन्द्रियाणां संज्ञिनाम् । एकेन्द्रियविकलेन्द्रियसंज्ञिनां तिस्रोऽशुभलेश्या भवन्ति, भोगभूमिजानां भोगभूमिप्रतिभागजानां च तिर्यङ्मनुष्याणां तिस्रः शुभा लेश्या भवन्ति, शेषाणां पुनः कर्मभूमिजानां कर्मभूमिप्रतिभागजानां च तिथंङ मनुष्याणां षडपि लेश्या भवन्ति । अत्रापि केषांचिद्रव्यलेश्याः स्वायु प्रमाणावधृता। भावलेश्याः पुनः सर्वेषामन्तर्मुहूर्तपरिवतिन्यः कषायाणां हानिवृद्धिभ्यां तासां हानिवृद्धी वेदितव्ये इति ॥११३६।। प्रवीचारकारणेन्द्रियविषयभेदं प्रतिपादयन्नाह___कामा दुवे तिओ भोग इंदियत्था विहिं पण्णत्ता।
कामो रसो य फासो सेसा भोगेति आहीया ॥११४०॥ कामा-काम: स्त्रीपुंनपुंसकवेदोदयकृततद्विषयाभिलाषस्तस्य कारणत्वात्कामः कारणे कार्योपचारात, दुवे-द्वौ, तिओ-त्रयः, भोग-भोगा:, ईदियथा--इन्द्रियार्था इन्द्रियविषयाः स्पर्शरसगन्धरूप
गाथार्थ-एकेन्द्रिय,विकलेन्द्रिय और असंज्ञी जीवों के तीन अशुभ लेश्याएँ हैं। असंख्यात वर्ष की आयुवालों के तीन शुभ लेश्याएँ हैं और शेष जीवों के छहों लेश्याएँ हैं ॥११३६॥
प्राचारवति-पृथिवीकायिक से लेकर वनस्पतिपर्यन्त एकेन्द्रिय जीवों के, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के तथा शिक्षा आलाप आदि, और ग्रहण करने में अयोग्य ऐसे असैनी पंचेन्द्रिय जीवों के कापोत, नील और कृष्ण ये तीन अशुभ लेश्याएँ ही रहती हैं। भोगभमिज और भोगभूमिप्रतिभागज जीव जो असंख्यात वर्ष की आयुवाले होते हैं, में तेज, पद्म
और शुक्ल ये तीन शुभलेश्याएं ही होती हैं। शेष---कर्मभूमिज और कर्मभूमिप्रतिभागज पंचेन्द्रिय सैनी तिर्यंच तथा मनुष्यों में छहों लेश्याएं होती हैं। यहाँ पर भी किन्हीं जीवों के द्रव्यलेश्या अपने आयुप्रमाण निश्चित है। किन्तु सभी जीवों को भावलेश्या अन्तम हुर्त में परिवर्तन करनेवाली होती है, क्योंकि कषायों की हानि-वृद्धि से उनकी हानि-वृद्धि जानना चाहिए।
प्रवीचार कारण और इन्द्रिय विषयों का भेद प्रतिपादित करते हैं
गाथार्थ-इन्द्रियों के विषय दो इन्द्रिय के कामस्वरूप और तीन के भोगस्वरूप हैं ऐसा विद्वानों ने कहा है । रस और स्पर्श ये दो इन्द्रियाँ काम हैं और शेष इन्द्रियाँ भोग हैं ऐसा कहा गया है ॥११४०॥
प्राचारवृत्ति-स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द ये पाँच इन्द्रियों के विषय हैं । अथवा स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इन्द्रियाँ हैं तथा इनके उपर्युक्त पाँच विषय हैं। प्रत्यक्षदर्शी सर्वज्ञदेव ने इनमें से स्पर्श और रस को काम तथा शेष तीन को भोग शब्द से कहा
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