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________________ पर्याप्तत्यधिकारः ] [ २८३ तेऊ तेऊ - तेजस्तेजः जघन्यतेजोलेश्या, तह — तथा, तेऊ - तेजः मध्यमतेजोलेश्या, पम्म - पद्मा जघन्यपद्मलेश्या उत्कृष्टतेजोलेश्या च, पम्मा - पद्मा च मध्यमपद्मलेश्या, पम्मसुक्का य - पद्मशुक्ला च उत्कृष्ट पद्मलेश्या जघन्यशुक्ललेश्या च सुक्का य - शुक्ला च मध्यमशुक्ला, परमशुषका — परमशुवला सर्वोत्कृष्ट शुक्ल लेश्या, लेस्साभेदो - लेश्याभेद:, मुणेयव्वो - ज्ञातव्य इति ।। ११३७ ।। एते सप्त लेश्याभेदाः केषामित्याशंकायामाह - तिन्हं - त्रयाणां त्रिषु वा, दोन्हं - द्वयोः, पुनरपि दोन्हं- द्वयोः छण्हं- षण्णां दोहं चद्वयोश्च, तेरसहं च - त्रयोदशानां त्रयोदशसु वा एतो य- इतश्चोपरि चोदसहं चतुर्दशानां चतुर्दशसु वा लेस्सा - लेश्या: पूर्वोक्ताः सप्त लेश्याभेदाः, भवणादिदेवाणं - भवनादिदेवानाम् । भवनवानव्यन्तरज्योतिष्केषु त्रिषु देवानां जघन्यतेजोलेश्या, सोधेर्मेशन पोर्देवानां मध्यमतेजोलेश्या, सानत्कुमारमाहेन्द्रयोर्देवानामुत्कृष्टतेजोलेश्या जघन्यपद्मलेश्या च ब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठशुक्रमहाशुक्रेषु षट्सु देवानां मध्यमपद्मलेश्या, शतारसहस्रारयोरुत्कृष्टपद्मलेश्या जघन्यशुक्ललेश्या च, आनतप्राणतारणाच्युतसहितेषु नवसु ग्रैवेयकेषु त्रयोदशसंख्यकेषु मध्यमशुक्ललेश्या, नवानुत्तरेषु पंचानुत्तरेषु चतुर्दशसंख्येषु परमशुक्ललेश्या, 'सर्वत्र देवानामिति यथासंख्येन संबन्ध इति ।।११३८ । तिर्यङ, मनुष्याणां लेश्याभेदमाह- तिन्हं दोहं दोहं छण्हं दोण्हं च तेरसण्हं च । एतोय चोदसण्हं लेस्सा भवणादिदेवाणं ।। ११३८ । प्राचारवृत्ति- - जघन्य तेजो लेश्या, मध्यम तेजोलेश्या, उत्कृष्ट तेजोलेश्या और जघन्यपद्मलेश्या, मध्यमपद्मलेश्या, उत्कृष्टपद्मलेश्या और जघन्यशुक्ललेश्या, मध्यम शुक्ललेश्या, और परम शुक्ललेश्या ये लेश्याओं के भेद जानना चाहिए। सात लेश्याओं के ये भेद किनके हैं ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं गाथार्थ - भवनवासी आदि तीन प्रकार के देवों में दो स्वर्गो में, दो स्वर्गों में, छह स्वर्गों में, दो स्वर्गों में, तेरहवें में और उसके आगे चौदहवें में ऐसे सात स्थानों में क्रम से लेश्या के सात भेद होते हैं ।।११३८ । आचारवृत्ति - भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी इन तीन प्रकार के देवों में जघन्य तेजोलेश्या है। सौधर्म - ऐशान स्वर्ग में देवों के मध्यम तेजोलेश्या होती है । सानत्कुमार और माहेन्द्र में देवों के उत्कृष्ट तेजोलेश्या और जघन्य पद्मलेश्या हैं। ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ, शुक्र और महाशुक्र इन छह स्वर्गों में देवों के मध्यमपद्म लेश्या है । शतार और सहस्रार स्वर्गों में देवों के उत्कृष्ट पद्मलेश्या और जघन्य शुक्ल लेश्या है। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन चार कल्प और नव ग्रैवेयक इन तेरहों में मध्यम शुक्ल लेश्या है। नव अनुत्तर अर्थात् अनुदिश और पाँच अनुत्तर इन चौदहों में परमशुक्ल लेश्या है । ये लेश्याएं सर्वत्र देवों के होती हैं यह यथाक्रम लगा लेना चाहिए । तिर्यंच और मनुष्यों में लेश्याभेदों को कहते हैं १. सर्व । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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