SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ मूलाचारे अधिकं, हि-स्फुटं निश्चयेन, पल्लं-पल्यं, पल्योपमं, लेहिट्ठ--न्यून हीनं अनन्तरेण शतेनाभिसंबन्धः, वरिसणामस्स-वर्षनाम्नः बृहस्पतेः। चन्द्रस्य परमायुरेक पल्योपमं वर्षाणां शतसहस्रणाधिकं, रवेरेक पल्योपमं परमायुर्वर्षाणां सहस्रणाधिकं, शुक्रस्य परमायुरेक पल्योपमं वर्षाणां शतेनाधिक, बृहस्पतेरेक पल्योपमं वर्षाणां शतेन न्यून स्फुटमिति ॥११२४॥ अथ कथ शेषाणामित्यत आह सेसाणं तु गहाणं पल्लद्ध आउग मुणेयव्वं । ताराणं च जहण्णं पादद्ध पादमुक्कस्सं ॥११२५॥ सेसाणं-शेषाणां, तुशब्दः समुच्चयार्थः स नक्षत्राणि समुच्चिनोति । गहाणं-ग्रहाणां, पल्लद्धपल्यस्या, आउगं आयुः, मुणेयव्वं-ज्ञातव्यम् । ताराणं-ताराणां ध्रुवकीलकादीनां, चशब्दात्केषांचिन्नभत्राणां च जहष्णं-जघन्यं निकृष्टं, पावद्ध-पादाद्ध पल्योपमपादस्याद्ध पल्योपमस्याष्टमो भागः, पावंपादः पल्योपमस्य चतुर्थो भागः उक्कस्सं-उत्कृष्टं, शेषाणां ग्रहाणां मंगलबुधशनैश्चरराहकत्वादीनां केषांचिन्नक्षत्राणां चोत्कृष्टमायः पल्योपमा ताराणां केषांचिन्नक्षत्राणां चोत्कृष्टमायुः पल्योपमस्य चतुर्थो भागसतेषामेव च जघन्यमायः पल्योपमस्याष्टमभागः । एवं प्रतरासंख्यातभागप्रमितानां ज्योतिषां परमायनिकृष्टायुश्च वेदितव्यमिति ॥११२५॥ तिर्यङ्मनुष्याणां निकृष्टमायुः प्रतिपादयन्नाह सम्वेसि अमणाणं भिण्णमुहुत्तं हवे जहण्णेण । सोवक्कमाउगाणं सण्णीणं चावि एमेव ॥११२६॥ सर्वेसि-सर्वेषां, अमणाणं-अमनस्कानां सर्वग्रहणादेकेन्द्रियद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणां च एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य है । सूर्य की एक हजार वर्ष अधिक एक पल्य है। शुक्र की सी वर्ष अधिक एक पल्य है और बृहस्पति की सौ वर्ष से कम एक पल्य प्रमाण है। शेष ज्योतिषियों की आयु किस प्रकार है, उसे ही बताते हैं गाथार्थ-शेष ग्रहों की आयु अर्ध पल्य समझना। ताराओं की जघन्य आयु पाव पल्य का आधा है और उत्कृष्ट आयु पाव पल्य है ।।११२५।। ___ आचारवृत्ति-शेष ग्रहों और नक्षत्रों की अर्थात् मंगल, बुध, शनैश्चर, राहु और केतु आदि ग्रहों की तथा किन्हीं नक्षत्रों की उत्कृष्ट आयु अर्ध पल्य प्रमाण है । ताराओं की तथा किन्हीं नक्षत्रों की उत्कृष्ट आयु पल्य के चतुर्थ भाग प्रमाण है और उन्हीं की जघन्य आयु पल्योपम के आठवें भाग प्रमाण है । इस प्रकार से प्रतर के असंख्यातवें भाग प्रमाण ऐसे असंख्यात ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट और जघन्य आदि समझना चाहिए। तिर्यञ्च और मनुष्यों की जघन्य आयु प्रतिपादित करते हैं गाथार्थ-सभी असंज्ञी जीवों की आयु जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है। सोपक्रम आयुवाले सज्ञी जीवों की भी अन्तर्मुहूर्त है ।।११२६॥ आचारवृत्ति-अमनस्क-एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रय और असंज्ञी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy