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________________ [ मूलाचार मिन्द्रकं, शतारमे कमिन्द्रकं सहप्रारकल्पे, प्राणतकल्पे आनतप्राणतपुष्पकाणि त्रीणीन्द्रकाणि, अच्युतकल्पे सानत्कुमारारणाच्युतानीन्द्र कागि त्रीणि, अधोवेयके सुदर्शनामोधप्रबद्धानि त्रीणीन्द्रकाणि, मध्यमवेयके यशोधरसुभद्रसुविशालानि त्रीणीन्द्रकाणि, उर्ध्वग्रैवेयके सुमनःसौमनसप्रीतिकराणि त्रीणीन्द्रकाणि, अनुदिश आदित्यमेकमिन्द्रकम्, अनुत्तरे सर्वार्थसिद्धिसंज्ञकमेकमिन्द्रकम्, इत्येतेषु स्वायुषः प्रमाणं वेदितव्यम् । अत्र सौधर्मे प्रथमप्रस्तरे ऋतुसंज्ञके उत्कृष्टमायुरर्द्धसागरोपमं तन्मुखं तत्रैवावसानेन्द्रके उत्कृष्टमायुट्टै सागरोपमे सागरोपमा धिके तद्भूमिरुच्छ्रयस्त्रिशदिन्द्रकाणि भूमेर्मुखमपनीयोच्छ्रायेण भागे हृते सागरोपमस्य पंचदशभागो वृद्धिरागच्छति इमामिष्टप्रतरसंख्यया गुणयित्वा मुखे प्रक्षिप्ते विमलादीनां त्रिंशतः प्रस्तराणामुत्कृष्टान्यायूंषि भवन्ति । तेषां संदृष्टयः, न्यास इत्यम् सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्तेन्द्रकाणि । तत्र द्वे सागरोपमे सागरोपमार्दाधिके मुखं, सार्द्धसप्तसागरोपमाणि भूमिः, सप्तेन्द्रकाणि उच्छ्यः, भूमेर्मुखं विशोऽयोच्छ्रयेण भागे हृते वृद्धिरागच्छति तामिष्टप्रस्तरसंख्यया कल्प में एक इन्द्रक है। उसका नाम शतार है। प्राणत कल्प में तीन इन्द्रक हैं-आनत, प्राणत और पुष्पक। अच्युत कल्प में तीन इन्द्रक हैं-सानत्कुमार, आरण और अच्युत। ___ अधो ग्रेवेयक में तीन इन्द्रक हैं। उनके नाम सुदर्शन, अमोघ और प्रबुद्ध हैं। मध्यम प्रैवेयक में तीन इन्द्रक हैं उनके नाम हैं-यशोधर, सुभद्र और सुविशाल । ऊर्ध्व ग्रेवेयक में तीन इन्द्रक हैं। उनके नाम सुमनस, सौमनस और प्रीतिकर हैं । अनुदिश में आदित्य नामक एक इन्द्रक एवं अनुत्तर में सर्वार्थसिद्धि नामक एक इन्द्रक है। ऐसे ये प्रेसठ इन्द्रकों के स्थान और नाम कहे गये हैं। इनमें रहनेवाले देवों के अपने इन्द्रकों में कही गयी आयु का प्रमाण जानना चाहिए। प्रत्येक पटल को आयु जानने की विधि कहते हैं प्रथम सौधर्म स्वर्ग में ऋतु नामक प्रथम इन्द्रक में देवों की उत्कृष्ट आयु अर्धसागर है। यह मुख है। इसी कल्प के प्रभानामक अन्तिम पटल में उत्कृष्ट आयु ढाई सागर है। यह भूमि है। यहाँ पर उच्छ्य बीस इन्द्रक हैं। भूमि में से मुख को घटाकर और शेष में ऊँचाई का भाग देने से सागर का पन्द्रहवाँ भाग वृद्धि का प्रमाण आता है। इस प्रमाण को इष्ट इन्द्रक की संख्या से गुणित कर उसमें मुख का प्रमाण मिला देने पर विमल आदि तीस इन्द्रकों की उत्कृष्ट आयु का प्रमाण निकल आता है। उनकी संदृष्टि रचना वृत्ति में दी गयी तालिका की भांति है। सानत्कुमार और माहेन्द्र में सात इन्द्रक हैं। वहाँ ढाई सागर मुख है और साढ़े सात सागर भूमि है । सात इन्द्रक उच्छ्रय हैं । भूमि में से मुख को घटाकर उच्छ्य से भाग देने पर वृद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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