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________________ पर्याप्स्यविकार ] [२६५ घातायुषः समुत्पत्तेरभावात् । सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्त-सागरोपमाणि परमायुषः स्थितिः सर्वत्र देवानामिति सम्बन्धनीयं, ब्रह्मब्रह्मोत्तरयोर्दश सागरोपमाणि, किन्तु लोकांतिकदेवानां सारस्वतादीनामष्टो सागराः, लान्तवकापिष्ठयोश्चतुर्दश सागराः, शुक्रमहाशुक्रयोः षोडशाब्धयः, शतारसहस्रारयोरष्टादश पयोधयः, आनतप्राणतयोविंशतिः सागरोपमानाम्, मारणाच्युतयोविंशतिः सागरोपमानां, सुदर्शनेत्रयोविंशतिरब्धीनाम्, अमोघे चतुर्विशतिः पयोधीनां, सुप्रबुद्धे पंचविंशतिरुदधीनां, यशोधरे षड्विंशतिर्नदीपतीनां, सुभद्रे सप्तविंशतिरुदधीनां सुविशालेऽष्टाविंशतिरब्धीनां, सुमनस्येकान्नत्रिंशदुदधीनां, सौमनसे त्रिंशदर्णवानां, प्रीतिकर एकत्रिंशदुदधीनाम्, अनुदिशि द्वात्रिंशदुदधीनां, सर्वार्थसिद्धौ त्रयस्त्रिशत्सागरोपमानामेवं त्रिषष्टिपटलेषु चतुरशीतिलक्षविमानेषु त्रयोविंशत्यधिकसप्तनवतिसहस्राधिकेषु श्रेणिबद्धप्रकीर्णकसंज्ञविमानेषु देवानां स्वकीयस्वकीयेन्द्रकवद्देवायुषः प्रमाणं वेदितव्यं । ऋतुविमलचन्द्रवल्गुवीरारुणनन्दननलिनकाचनरोहितचंचन्मारुतझैशानवैर्यरुचकरुचिरांकस्फटिकतपनीयमेघाभ्रहारिद्रपद्मलोहिताख्यवजनंद्यावर्त्तप्रभंकरपृष्ठंकरांजनमित्रप्रभाख्यान्येकत्रिशदिन्द्रकाणि सौधर्मेशानयोः । अंजनवनमालानागगरुडलांगलबलभद्रचक्राणि सप्तकेन्द्रकाणि सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः । अरिष्टदेवसंमितब्रह्मब्रह्मोत्तराणि चत्वारीन्द्रकाणि ब्रह्मलोके । ब्रह्महृदयलांतवे चन्द्र के लान्तवकल्पे, महाशुक्रकल्पे शुक्रमेक सानत्कुमार और माहेन्द्र में उत्कृष्ट आयु सात सागर है। ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्गों में दश सागर है, किन्तु ब्रह्मस्वर्ग के लौकान्तिक. देवों की उत्कृष्ट आयु आठ सागर है। लान्तव-कापिष्ठ में चौदह सागर है । शुक्र-महाशुक्र में सोलह सागर है। शतार-सहस्रार में अठारह सागर है। आनत-प्राणत में बीस सागर और आरण-अच्युत स्वर्ग में बाईस सागर प्रमाण है। इससे आगे नव ग्रैवेयकों में एक-एक सागर अधिक होती गयी है। सुदर्शन नामक प्रथम प्रैवेयक में तेईस सागर, अमोघ नामक द्वितीय अवेयक में चौबीस सागर, सुप्रबुद्ध नामक तृतीय में पच्चीस सागर, यशोधर नामक चतुर्थ में छब्बीस सागर, सुभद्र नामक पांचवें में सत्ताईस सागर, सुविशाल नामक छठे में अट्ठाईस सागर, सुमनस्य नामक सातवें में उनतीस सागर, सौमनस नामक आठवें में तीस सागर और प्रीतिकर नामक नौवें अवेयक में इकतीस सागर उत्कृष्ट आयु है। आगे नव अनुदिशों में बत्तीस सागर उत्कृष्ट आयु है और सर्वार्थसिद्धि में उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर प्रमाण है। __ इस प्रकार से स्वर्गों के प्रेसठ पटलों में तथा चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस प्रमाण श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक नामक विमानों में देवों की आयु अपने-अपने इन्द्रक के समान जान लेना चाहिए। सौधर्म आदि स्वर्गों में प्रेसठ पटल हैं, इन्हें ही इन्द्रक विमान कहते हैं। वे कहाँ पर कितने हैं ? उसे ही बताते हैं * सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में इकतीस इन्द्रक हैं। उनके नाम हैं : ऋतु, विमल, चन्द्र, वल्गु, वीर, अरुण, नन्दन, नलिन, कांचन, रोहित, चंचत्, मारुत, ऋद्धि, ईशान, वैडर्य, रुचक, रुचिर, अंकस्फटिक, तपनीय, मेघ, अभ्र, हारिद्र, पद्म, लोहित, वज्र, नन्द्यावर्त, प्रभक पृष्ठंकर, अंजन, मित्र और प्रभा। सानत्कुमार-माहेन्द्र में सात इन्द्रक हैं। उनके नाम हैंअंजन, वनमाला, नाग, गरुड, लांगल, बलभद्र और चक्र । ब्रह्मलोक में चार इन्द्रक हैं। उनके नाम हैं-अरिष्ट, देवसंमित, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर। लान्तव कल्प में दो इन्द्रक हैं। उनके नाम हैं-ब्रह्महदय और लान्तव । महाशुक्रकल्प में एक इन्द्रक है। उसका नाम है-शुक्र । सहस्रार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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