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[ मूलाधारे पंचेन्द्रियस्य शिक्षालापादिरहितपंचेन्द्रिय स्य, चवखुप्फासं-चक्षुःर१र्श चक्ष विषयं चक्षषा ग्रहणं, वियाणाहि-. विजानीहि । योजनशतानामेकोनषष्ठिस्तथैवाष्टयोजनानि च भवन्ति ज्ञातव्यान्येतत्प्रमाणमसंज्ञिपंचेन्द्रियस्य चक्षुरिन्द्रियविषयं जानीहि 'एतावत्यध्वनि स्थितं रूपमसंज्ञिपंचेन्द्रियो गृह्णाति चक्षुरिन्द्रियेणेति ॥१०६६॥ असंज्ञिपंचेन्द्रियस्य श्रोत्रविषयं प्रतिपादयन्नाह
अट्ठव धणुसहस्सा सोदप्फासं असण्णिणो जाण ।
विसयावि य णायव्वा पोग्गलपरिणामजोगेण ॥१०६७॥ अट्टव धणुसहस्सा-अष्टावेव धनुःसहस्राणि,सोदप्फासं--श्रोत्रस्पर्श श्रोत्रेन्द्रियविषयं; असणिणोअसंज्ञिनोऽसंज्ञिपंचेन्द्रियस्य, जाण-जानीहि । असंज्ञिपंचेन्द्रियश्रोत्रविषयं धनुषामष्टसहस्र जानीरतावताध्वना स्थित शब्द गह्णाति श्रोत्रेणासंज्ञिपंचेन्द्रिय इति। विसयावि य-विषयाश्चापि णायव्या-ज्ञातम्याः । पोगलपरिणामजोगेण-पूदगलस्य मृतद्रव्यस्य परिणामो विशिष्ट संस्थानमहत्त्वप्रकृष्टवाण्या दिः पूदगलपरिणामस्तेन योग: संपर्कस्तेन, पुदगलपरिणामयोगेन एतावतोक्तांतरेण विशिष्टा रूपादयः दिवाकरादिभूता विशिष्टरिन्द्रियगृह्यन्ते नान्यथेति ॥१०६७॥ संज्ञिपंचेन्द्रियस्य पंचेन्द्रियविषयं प्रतिपादयन्नाह
फासे रसे य गंधे विसया णव जोयणा य 'णायव्वा ।
सोदस्स दु वारसजोयणाणिदो चक्खुसो वोच्छं ॥१०९८॥ फासे-स्पर्शस्य स्पर्शनेन्द्रियस्य, रसे-रजस्य रसनेन्द्रियस्य, गंषे-गन्धस्य घ्राणेन्द्रियस्य,
जीव के चक्षु इन्द्रिग का विषय उनसठ सौ आठ योजन प्रमाण है। अर्थात् इतने मार्ग में स्थित रूपको ये जीव चक्ष द्वारा ग्रहण कर लेते हैं।
असंज्ञी पंचेन्द्रिय के श्रोत्र का विषय कहते हैं--
गाथार्थ-असंज्ञी पंचेन्द्रिय के श्रोत्र का विषय आठ हजार धनुष है ऐसा जानो। पुद्गल परिणाम के सम्पर्क से ये विषय जानना चाहिए ।।१०६७॥
आचारवत्ति-असैनी पंचेन्द्रिय जीव के कर्ण इन्द्रिय का विषय आठ हजार धनष है। अर्थात इतने अन्तर में उत्पन्न हुए पौद्गलिक शब्दों को ये ग्रहण कर लेते हैं। मूर्तिक पुदगल द्रव्य के परिणमन रूप विशिष्ट संस्थान, महत्त्व और प्रकृष्ट वाणी आदि हैं । सूर्य आदि भी पुदगल के परिणमन हैं। ये सब पौद्गलिक ही विशिष्ट इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किये जाते हैं, अन्य कळ नहीं।
संज्ञी पंचेन्दिय जीव के पाँचों इन्द्रियों के विषयों का प्रतिपादन करते हैं
गाथार्थ-स्पर्शन, रसना और घ्राण इन्द्रिय के विषय नव योजन प्रमाण हैं, श्रोत्र इन्दिय का विषय द्वादश योजन है । इसके आगे चक्षु इन्द्रिय का बिषय कहेंगे ॥१०९८॥
आचारवृत्ति-संज्ञी पंचेन्द्रिय चक्रवर्ती आदि के इन्द्रियों का उत्कृष्ट विषय कहते हैं।
१. क एतावति गोचरे। २. क वर्णादि । ३. व बोहव्वा।
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