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[ मूलाधारे
सुहमणिगोव--सूक्ष्मनिगोदस्य, अपज्जत्तयस्स -- अपर्याप्तकस्य, जावस्स - जातस्योत्पन्नस्य, तबियसमय - तृतीयसमये, प्रथमद्वितीयसमययोः प्रदेशविस्फूर्जन सद्भावात्पूर्वदेहसामीप्याद्वा महच्छरीरं भवति तृतीयसमये पुन: प्रदेशानां निचयानुसारेणावस्थानाच्च सर्वजघन्यं भवति शरीरं, हवदि दु-भवत्येव, सव्वजहणणं - - सर्व जघन्यं सव्बुक्कस्सं - सर्वोत्कृष्टं, जलचराणां - मत्स्यानां पद्मानां वा । सूक्ष्मनिगोदस्यापर्याप्तस्य तृतीयसमये जातमात्रस्य सर्वजघन्यशरीरोत्सेधः, जलचराणां च पद्मानां सर्वोत्कृष्टः शरीरायाम इति । अत्रापि लोकस्य सप्तैकं पंचैकं रज्जुप्रमाणं द्रष्टव्यं तथा मेरुकुल पर्वत विजयार्द्धष्वाकार कांचन गिरिमनुष्योत्तरकुण्डलवरांजनदधिमुखरतिकर स्वयंभूनगवरेन्द्रदंष्ट्रा गिरिभवनविमानतोरण जिनगृहपृथिव्यष्ट केन्द्र कप्रकीर्णक श्रेणिबद्धनरक्षेत्रवेदिका जम्बूशाल्मलीधातकीपुष्कर चैत्य वृक्ष कूट ह्रदनदीकुंडायतनवापीसिंहासनादीनामुत्सेधायामप्रमाणं द्रष्टव्यं लोकानुयोगत इति ॥ १०६०।।
देहसूत्रं व्याख्याय संस्थानसूत्र' प्रपंचयन्नाह
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मसुरिय कुसग्गविंद सूइकलावा पडाय संठाणा । कायाणं संठाणं हरिदतसा णेगसंठाणा ॥ १०६१ ॥
मसुरिय - मसूरिका वृन्ताकारा, कुसग्गविद्— कुशस्याग्रं कुशाग्रं तस्मिन् बिन्दुरुदककणः कुशाग्रबिन्दुर्वर्तुलाकारमुदकं, सूइकलावा - सूचीकलापः सूची समुदायः, पडाय-पताका, संठाणं - संस्थानान्याकाराः,
आचारवृत्ति - सूक्ष्म निगोदिया लब्धअपर्याप्तकजीव के जन्म लेने के तृतीय समय में सर्व जघन्य शरीर होता है, क्योंकि प्रथम और द्वितीय समय में प्रदेशों का विस्फूर्जन — फैलाव होने से अथवा पूर्वशरीर के समीपवर्ती होने से बड़ा शरीर रहता है । पुनः तृतीय समय में प्रदेशों का निचय के अनुसार अवस्थान हो जाने से सर्वजघन्य शरीर हो जाता है । तथा जलचरों में मत्स्य और वनस्पति काय में कमल का शरीर सर्वोत्कृष्ट होता है ।
यहाँ पर भी लोक को सात-एक, पाँच-एक राजु प्रमाण जान लेना चाहिए । तथा मेरुपर्वत, कुलपर्वत, विजयार्द्ध गिरि, इष्वाकार, कांचनगिरि, मानुषोत्तर, कुण्डलवर, अंजनगिरि, दधिमुख, रतिकर, स्वयंभू-नगवरेन्द्र, दंष्ट्रागिरि, भवन, विमान, तोरण, जिनगृह, आठ पृथिवी, इन्द्रक, प्रकीर्णक, श्रेणीबद्ध, नरक्षेत्र, वेदिका, जम्बूवृक्ष, शाल्मलीवृक्ष, धातकीवृक्ष, पुष्करवृक्ष, चैत्यवृक्ष, कूट, ह्रद, नदी, कुण्ड, आयतन, वापी, सिंहासन आदि की ऊँचाई और लम्बाई-चौड़ाई IT प्रमाण लोकानुयोग से जान लेना चाहिए ।
देहसूत्र का व्याख्यान करके अब संस्थानसूत्र कहते हैं
गाथा - पृथिवी आदि कायों के आकार क्रम से मसूरिका, कुश के अग्रभाग के बिन्दु, सुइयों के समूह और पताका के आकारसदृश है तथा हरितकाय और त्रसकायों के अनेक संस्थान होते हैं ।। १०६१॥
श्राचारवृत्ति - पृथ्वीकाय का मसूरिका के समान गोल आकार है। जलकाय का आकार कुश के अग्र भाग पर पड़ी हुई गोल-गोल बिन्दु के समान है। अग्निकायिक का आकार
१. च पद्मानामिति पाठः क पुस्तके नास्ति ।
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२. क संस्थानसूत्रार्थं ।
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