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________________ पर्याप्तत्यधिकारः } [ २३९ कायाणं - कायानां पृथिवीकायिका दिवायुकायान्तानां सं ठाणं - संस्थानानि शरीराकाराः । मसूरिका इव संस्थानं यस्य तन्मसूरिकासंस्थानं, कुशाग्रबिन्दुरिव संस्थानं यस्य तत्कुशाग्रबिन्दुसंस्थानं, सूचीकलाप इव संस्थानं यस्य तत्सूची कलापसंस्थानं, पताका इव संस्थानं यस्य तत्पताका संस्थानं यथासंख्येन संबन्धः, पृथिवीकायस्य संस्थानं मसूरिकासंस्थानं, अप्कायस्य संस्थानं कुशाग्रबिन्दुसंस्थानं, तेजःकायस्य संस्थानं सूचीकलापसंस्थानं, वायुकायस्य संस्थानं पताकासंस्थानम् । मसूरिकाद्याकार इव पृथिवीकायिकादयः । हरिबतसा - हरितत्रसाः प्रत्येक साधारणबादर सूक्ष्म वनस्पतिद्वन्द्रिय त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाः, णेगसंठाणा - अनेकसंस्थाना नैकमनेकमनेकं संस्थानं येषां तेऽनेकसंथाना अनेकहुंड संस्थानविकल्पा अनेकशरीराकाराः । त्रसशब्देन द्वीन्द्रियादिचतुरिन्द्रियपर्यन्तागृह्यन्ते पंचेन्द्रियाणां संस्थानस्योत्तरत्र प्रतिपादनादिति ।। १०६१ ॥ पंचेन्द्रिय संस्थान प्रतिपादनार्थमाह समचउरसणग्गोहासादियखुज्जायवामणाहुंडा । पंचेंदियतिरियणरा देवा चउरस्स णारया हुंडा ॥ १०६२ ॥ संस्थानमित्यनुवर्तते । समच उरस - समचतुरस्र संस्थानं यथा प्रदेशावयवं परमाणूनामन्यूनाधिकता । जग्गोह – न्यूग्रोध संस्थानं शरीरस्योर्ध्वभागेऽवयवपरमाणु बहुत्वम् । सादि - स्वातिसंस्थानं शरीरस्य नाभेरधः कटिजंघा पादाद्यवयवपरमाणूनामधिकोपचयः । खुज्जा - कुब्जसंस्थानं शरीरस्य पृष्ठावयवपरमाण्वधिकोपचयः । वामणा – वामनसंस्थानं शरीरमध्यावयवपरमाणुबहुत्वं हस्तपादानां च ह्रस्वत्वम् । हुंडा - हुण्डसंस्थानं सर्व सुइयों के समूह के आकार जैसा है । वायुकाय का आकार पताका के आकार का है । तथा प्रत्येक साधारण बादर-सूक्ष्म वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रोन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के शरीर का आकार एक प्रकार का नहीं है, अनेक आकार रूप है । अर्थात् ये सब अनेक भेदरूप हुण्डक संस्थानवाले हैं । स शब्द से द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों को ग्रहण करना, चूँकि पंचेन्द्रियों के आकार अगले सूत्र में बतलाते हैं । पंचेन्द्रियों का संस्थान प्रतिपादित करते हैं गाथार्थ -- पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य समचतुरस्र, न्यग्रोध, स्वाति, कुब्जक, वामन और हुण्डक संस्थानवाले होते हैं । देव समचतुरस्र संस्थानवाले हैं और नारकी हुण्डक संस्थान वाले हैं ॥ १०६.२॥ श्राचारवृत्ति-संस्थान की अनुवृत्ति चली आ रही है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य के छहों संस्थान होते हैं । समचतुरस्रसंस्थान - प्रत्येक अवयवों में जितने प्रदेश - परमाणु होना चाहिए उतने होना, हीनाधिक नहीं होना । न्यग्रोधसंस्थान--- शरीर के ऊपर के अवयवों में बहुत से परमाणुओं का होना । स्वातिसंस्थान - शरीर के नाभि के नीचे कटि, जंघा, पाद आदि अवयवों में अधिक परमाणुओं का संचय होना । कुब्जकसंस्थान - शरीर के पृष्ठ भाग के अवयवों में अधिक परमाणुओं का उपचय होना । वामनसंस्थान - शरीर के मध्य के अवयवों में बहुत से परमाणुओ का होना तथा हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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