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________________ पर्याप्त्यधिकारः] [२३१ जावदिया-यावन्ति 'यन्मात्राणि, उद्वारा-उद्धाराणि उद्धारपल्योपमानि तेषु यावन्ति रोमाणि, अढाइज्जाण-अर्द्धतृतीययोद्वयोरर्धाधिकयोः, सागरूवमाण-सागरोपमयोः, तावदिया-तावन्तस्तन्मात्राः खलु-स्फुटं, रोमा-उद्धारेषु रोमाणि सुकुमारोरणरोमाग्राणि, हवन्ति-भवन्ति, दीवा-द्वीपाः समुहायसमुद्राश्च । प्रमाणयोजनावगाहविष्कम्भायाम कूपं कृत्वा सप्तरात्रजातमात्रोरणरोमाग्रभागः पूर्ण च कृत्वा तत्र यावन्मात्राणि रोमाग्राणि तावन्मात्राणि वर्षशतानिगहीत्वा तत्रयावन्मात्रा:समयाव्यवहारपल्योपमंनाम। व्यवहारपल्योपमे चैकैकं रोम असंख्यातवर्षकोटीसमयमावान् भागान् कृत्वा वर्षशतसम्यैश्चैकैकं खण्डं प्रगुण्य तत्र यावन्मात्राः समयाः तावन्मात्रमुद्धारपल्योपमं भवति। उद्धारपल्योपमानि च दशकोटीकोटीमात्राणि गृहीत्वक उद्धारसागरोपमं भवति । तावन्मात्रयोदयोः सार्द्धयोः सागरोपमयोर्यावन्मात्राण्युद्धारपल्योपमानि तत्रच यावन्मात्राणि रोमाणि तावन्मात्राः स्फुटं द्वीपभमुद्रा भवन्तीति ।।१०७६।। ननु द्वीपग्रहणेन च समुद्राणां ग्रहणं संजातं तत्र न ज्ञायन्ते किमभिधानास्त इत्याशंकायामाह जंबदीवो लवणो धादइसंडे य कालउदधीय । सेसाणं दीवाणं दोवसरिसणामया उदधी॥१०८०॥ जबूढीवे-जम्बूद्वीपे, लवणो-लवणसमुद्रः, धावइसंडे य-धातकीखण्डे च. कालउदधी यकालोदधिसमुद्रः, सेसाणं-शेषेषु जम्बूद्वीपधातकीखण्डजितेषु, दोवाणं-द्वीपेषु द्विर्गता आपो येषां ते द्वीपा आचारवृत्ति-ढाई सागरोपम में उद्धार के जितने रोम खण्ड हैं उतने रोम खण्ड प्रमाण असंख्यात द्वीप और समुद्र माने गये हैं। उद्धार पल्य को समझने की प्रक्रिया बताते हैंप्रमाण-योजन अर्थात् दो हजार कोश परिमाण का लम्बा, चौड़ा और गहरा एक कूप-विशाल गड्ढा करके जन्म से सात दिन के मेढ़े के शिशु के कोमल बारीक रोमों के अग्रभाग जैसे खण्डों से उस गड्ढे को पूरा भर दें। पुनः जितने रोमखण्ड उसमें हैं उतने मात्र सौ वर्ष लें अर्थात् सोसौ वर्ष व्यतीत होने पर एक-एक रोमखण्ड को निकालें । उसमें जितना समय लगे उतने समय मात्र का नाम व्यवहार-पल्य हैं । व्यवहार-पल्य के एक-एक रोम खण्ड में असंख्यात करोड़ वर्ष के जितने समय हैं उतने खण्ड कर देने चाहिए। पुनः उन एक-एक खण्ड को सौ-सौ वर्ष के समयों से गुणा कर देना चाहिए। ऐसा करने से जितने समय होते हैं उतने को उद्धारपल्योपम कहते हैं। एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर कोड़ाकोड़ी होती है। ऐसे दश कोड़ाकोड़ी उद्धार पल्योपम का एक उद्धार सागरोपम होता है। इस प्रकार से बने हुए ढाई उद्धार सागरोपम में जितने उद्धार पल्योपम हैं और उनमें जितने मात्र रोम खण्ड हैं, उतने प्रमाण द्वीप और समुद्र होते हैं। द्वीप के ग्रहण से समुद्रों का ग्रहण हो गया है किन्तु वहाँ यह नहीं बताया गया है कि उनके क्या नाम हैं ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं गाथार्थ-जम्बद्वीप को वेष्टित कर लवण नाम का समुद्र है और धातकीखण्ड के बाद कालोदधि है । पुनः शेष द्वीपों के समुद्र अपने-अपने द्वीपसदृश नामवाले हैं ॥१०८०।। आचारवृत्ति-जिनके दोनों तरफ जल है वे द्वीप कहलाते हैं। अर्थात् जल रहित १. यावन्मामाणिक० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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