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वकारः |
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ग्रहणं द्रष्टव्यम् । श्रेणिबद्धप्रकीर्णकानां च । ब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठेषु च चतुर्षु कल्पेषु देवा इन्द्रादयः पंचहस्ताः प्रमाणेन भवन्ति तथा शुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारेषु च चतुर्षु कल्पेषु देवा इन्द्रसामानिकादयश्च चत्वारो हस्ताः शरीरप्रमाणेन भवन्तीति ।। १०६७ ।।
आनतादिदेव प्रमाणमाह
आजदषाणदकप्पे अद्ध द्धाओ हवंति रयणीओ ।
तिण्णेव य रयणीओ बोधव्वा आरणच्चुदे चापि ॥ १०६८ ॥
आचद- आनतकल्पे, पाणय-प्राणतकल्पे, कल्पशब्दः प्रत्येकमभिसंबध्यते, अद्ध ुद्धाओ - अर्द्धाfधकास्तिलो रत्नयस्त्रयो हस्ता हस्ताद्ध च, हवन्ति - भवन्ति, रयणीओ-रत्नयः । तिष्णेव - तिस्रश्च, रवीओ-— रत्नयः, बोद्धव्या शातव्याः, वारणच्चुवे चावि - आरणाच्युतयोरपि आरणकल्पेऽच्युतकल्पे च जानतप्राणसकल्पयोर्देवा इन्द्रादयस्त्रयो हस्ता भर्द्धाधिकाः शरीरप्रमाणेन बोद्धव्याः, आरणाच्युतकल्पयोश्च देवा इन्द्रादयस्त्रयो हस्ताः शरीरप्रमाणेन बोद्धव्या इति ॥ १०६६।।
नव वैयकदेवशरीरं प्रतिपादयन्नाह
मिगेवज्जेसु य अड्ढाइज्जा हवंति रयणीओ । मज्झिमवज्जेसु य वे रयणी होंति उस्सेहो ॥ १०६६॥
हेट्ठिमगेवज्जेसु य - अधोग्रैवेयकेषु अधो व्यवस्थिता वै ये त्रयो ग्रैवेयककल्पास्तेषु, अढ्डाइज्जाअर्वाधिक रनिद्वयं तृतीयार्द्धसहिते रत्नी वा भवतः, मज्झिमगेवज्जेसु-मध्यमग्रैवेयकेषु च मध्यमप्रदेशस्थितेषु विश्वनी -द्वे रत्नी द्वौ हस्तो, हवन्ति - भवतः, उस्सेहो - उत्सेधः शरीरप्रमाणम् । नव ग्रैवेयक
चाहिए। तथा वहाँ के श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानों को भी ग्रहण कर लेना चाहिए । अर्थात् ब्रह्म, बह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठ इन चार कल्पों में इन्द्र आदि देव पाँच हाथ प्रमाण शरीरवाले होते हैं । तथा शुक्र, महाशुक्र, शत्तार और सहस्रार इन चार कल्पों में इन्द्र, सामानिक आदि देव चार हाथ प्रमाण शरीर के धारक होते हैं ।
मानत आदि देवों के शरीर का प्रमाण कहते हैं
गाथार्थ-ये देव आनत - प्राणत कल्प में साढ़े तीन हाथ और आरण- अच्युत कल्प में तीन हाथ प्रमाण ऊँचे होते हैं, ऐसा जानना ।। १०६८॥
भाचारवृत्ति- -आनत - प्राणत कल्प में इन्द्रादिक देव साढ़े तीन हाथ प्रमाण ऊँचे हैं और आरण-अच्युत कल्प में तीन हाथ प्रमाण ऊँचाईवाले होते हैं ।
नवग्रैवेयक के देवों के शरीर का प्रमाण कहते हैं
गाथार्थ - अधोग्रैवेयकों में ढाई हाथ प्रमाण होते हैं । तथा मध्यम ग्रैवेयकों में ऊँचाइ दो हाथ प्रमाण है ||१०६६॥
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आचारवृत्ति - अधोभाग में तीन ग्रैवेयक हैं। उनमें अहमिन्द्रों के शरीर की ऊँचाई ढाई हाथ है और मध्य भाग में स्थिति तीन ग्रैवेयकों के अहमिन्द्र देवों की ऊंचाई दो हाथ है । अर्थात् नव ग्रैवेयक कल्प हैं । उनमें से अधोधः एक कल्प है, अधोमध्यम द्वितीय कल्प है, अध-उपरि
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