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[ मूलाचारे कलमा भवन्ति तत्रावोध एकः कल: अधोमध्यमो द्वितीयः कल्पः अबउपरि तृतीयः कल्पस्तेषु कल्पेषु त्रिषु देवा अहमिन्द्रा अर्द्धाधिको द्वो हस्तौ प्रमाणेन भवन्ति, तथाऽधोमध्यमः कल्प एकः मध्यमध्यमकल्पो द्वितीयः मध्यमोपरि कल्पस्तृतीय एतेषु त्रिषु कल्पेषु देवा अहमिन्द्रा द्विहस्तोत्सेधा भवन्तीति ।।१०६६॥ उपरिमवेयकदेवशरीरोत्सेधमनुत्तरदेवोत्सेधं चाह--
उवरिमगेवज्जेसु य दिवड्ढरयणी हवे य उस्सेहो।
अणुदिसणुत्तरदेवा एया रयणी सरीराणि ॥१०७०॥ उरिमगेवज्जेसु य-उपरिमग देयकेषूपरिप्रदेशव्यवस्थितेषु त्रिषु अवेयककल्पेषु, विवड्ढरयणीअाधिकरत्निः हस्तोपरं च हस्तार्द्ध, हवे य-भवेत्, उस्सेहो--उत्सेधः । उपर्यध एकः कल्पः, उपरिममध्यमो द्वितीयः कल्पः, उपर्युपरि तृतीयः कल्पः, एतेषु त्रिषु वेयककल्पेषु देवानां शरीरोत्सेध एको हस्तो हस्ताद च । यद्यपि सविकल्पा विद्यन्तेऽत आगमतस्ते ज्ञातव्या इति । अणदिस-अनुदिशकल्पे नवसु विमानेषु, अत्तरअनुत्तरकल्पे च पंचसु विमानेषु अहमिन्द्रा, एगा रयणी सरीराणि-एकरत्निशरीरा एकहस्तदेहप्रमाणाः, अनुदिशानुतरकल्पयोश्चतुर्दशविमानेषु देवा एकहस्तशरीरोत्सेधा भवन्तीति ॥१०७०॥
देवमनुष्यनारकाणां प्रमाणपूर्वकदेहस्वरूपं प्रतिपाद्य तिरश्चामेकेन्द्रियादिपंचेन्द्रियपर्यन्तानां शरीरोत्सेधद्वारेण जघन्यदेहमाह
भागमसंखेज्जदिम जं देहं अंगुलस्स तं देहं ।
एइंवियादिपंचेंदियंतदेहं 'पमाणेण ॥१०७१॥ तृतीय कल्प है, इन तीन कल्पों में अहमिन्द्र देव ढाई हाथ प्रमाण होते हैं। मध्य भाग में अधोमध्यम एक कल्प है, मध्यमध्यम द्वितीय कल्प है, और मध्यमोपरि नाम का तृतीय कल्प है। इन तीनों कल्पों में अहमिन्द्र देव दो हाथ प्रमाण वाले होते हैं।
उपरिम अवेयक के देवों के शरीर का उत्सेध और अनुत्तरदेवों का उत्सेध कहते हैंगाथार्थ-उपरिम प्रैवेयकों में डेढ़ हाथ की ऊँचाई है और अनुदिश-अनुत्तर के देव
१०७०॥ प्राचारवृत्ति-उमरिम भाग में स्थित तीन वेयकों में डेढ़ हाथ की ऊंचाई है अर्थात् आर के भाग में उपर्यधः नाम का एकः कल्प है, उपरिम-मध्यम द्वितीय कल्प है और उपर्युपरि तृतीय कल्प है। इन तीनों अवेयक कल्पों में अहमिन्द्र देवों के शरीर की ऊँचाई डेढ़ हाथ है। यद्यपि इनमें भेद हैं अतः इन्हें आगम से जानना चाहिए। अनुदिश कल्प नामक नव विमानों में
और अनुतर कल्प नामक पाँच विमानों में अहमिन्द्र देव एक हाथ प्रमाण ऊँचाई वाले होते हैं अर्थात् अनुदिश और अनुत्तर इन चौदह विमानों में देवों के शरीर का उत्सेध एक हाथ प्रमाण है।
देव, मनुष्य और नारकियों का प्रमाणपूर्वक देह-स्वरूप प्रतिपादित करके एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रियपर्यन्त तिर्यंचों के शरीर की ऊँचाई द्वारा जघन्य देह को कहते हैं
___ गाथार्थ-अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण जो देह है, वह देह जघन्य प्रमाण से एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय पर्यन्त है ।।१०७१।।
एक हाय के शरोरवाले हैं
१.
जहण्जेण।
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