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पर्याप्स्यधिकारः]
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ज्योतिष्काणां च सप्त धनंषि सामानिकत्रायस्त्रिशलोकपालवजितशेषनिकायानां च शरीरस्योत्सेधो ज्ञातव्य इति। भवनवासिनो दशप्रकारा भवन्ति-तत्र प्रथमप्रकारस्यासुरकुमारसंज्ञकस्य सामानिकादिसहितस्य शरीरोत्सेधः पंचविंशतिर्धनुषामुत्कृष्टः, नागकुमाराणां विद्युत्कुमाराणां सुपर्णकुमाराणामग्निकुमाराणां वातकुमाराणां स्तनितकुमाराणामुदधिकुमाराणां द्वीपकुमाराणां दिक्कुमाराणां सामानिकादिभेदभिन्नानां च दश दण्डाः शरीरस्योत्सेधः । व्यन्तराणामष्टप्रकाराणां स्वभेदभिन्नानां दश धनंषि शरीरस्योत्सेधः। ज्योतिकाणां च पंचप्रकाराणां स्वभेदभिन्नानां सप्त दण्डा: शरीरस्योत्सेधो ज्ञातव्य इति ॥१०६४॥
एते तिर्यग्लोके व्यवस्थितस्तद्वारेणव तिरश्चां च वक्ष्यमाणत्वादुल्लध्य प्रमाणं मनुष्याणां तावदुरकृष्टं प्रमाणमाह
छद्धणुसहसुस्सेधं च दुगमिच्छंति भोगभूमीसु ।
पणवीसं पंचसदा बोधव्वा कम्मभूमीसु॥१०६५॥ छद्धणुसहस्स-षड् धनुषां सहस्राणि, उस्सेघ-उत्सेधं शरीरप्रमाणं, चतु-चत्वारि सहस्राणि धनुषां, दुर्ग-द्वे सहस्रधनुषां, इच्छंति--अभ्युपगच्छन्ति, पूर्वाचार्या भोगभूमिषु दशप्रकारकल्पपादपोपलक्षितासु। पणवीसं-पंचविंशतिः, पंचसदा-पंचशतानि च धनुषां, बोधव्वा-बोद्धव्यानि ज्ञातव्यानि कर्मभूमिषु पंचसु भरतैरावतविदेहेषु । भोगभूमिपूत्कृष्ट मध्यमजघन्यासु मनुष्याणामुत्सेधं यथासंख्येन षट्चत्वारि सहस्राणि द्वे च सहस्र धनुषामिच्छन्ति, कर्मभूमिषु च मनुष्याणामुत्कृष्ट मुत्सेधं शतपंचकं पंचविंशत्यधिकमिच्छन्तीति । ॥१०६५॥
सात धनुष ही है । अर्थात् असुरकुमार नामक भवनवासी देव और उनके सामानिक आदि देवों के शरीर की उत्कृष्ट ऊँचाई पच्चीस धनुष, नागकुमार आदि शेष भवनवासी देव व उनके सामानिक देवों की दश धनुष, आठ प्रकार के व्यन्तरों की व उनके सामानिक आदि देवों की दश धनुष तथा पाँच प्रकार के ज्योतिषियों की व उनके सामानिक आदि देवों की सात धनुष प्रमाण ऊँचाई है।
तिर्यंच तिर्यग्लोक में अवस्थित हैं, अतः तिर्यचों का वर्णन प्रथम कहना चाहिए किन्तु उनके प्रमाण का उल्लंघन कर पहले मनुष्यों का उत्कृष्ट प्रमाण कहते हैं। तिर्यंचों का वर्णन आगे करेंगे।
गाथार्थ-भोगभूमि के मनुष्यों में छह हजार धनुष, चार हज़ार धनुष और दो हजार धनुष स्वीकार करते हैं । भूमियों में पाँच सौ पच्चीस धनुष जानना चाहिए ॥१०६५।।
आचारवृत्ति-दश प्रकार के कल्पवृक्षों से संयुक्त भोगभूमियाँ उत्तम, मध्यम और जघन्य की अपेक्षा तीन प्रकार की होती हैं। इन उत्तम, मध्यम और जघन्य भोगभूमियों में मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई क्रम से छह हजार धनुष, चार हज़ार धनुष और दो हज़ार धनुष है ऐसा पूर्वाचार्य स्वीकार करते हैं। पाँच भरत, पाँच ऐरावत तथा पाँच महाविदेहों की कर्मभूमियों में मनुष्यों की ऊँचाई पाँच सौ पच्चीस धनुष है।
• यह गाथा फलटन से प्रकाशित मूलाचार में देवों की अवगाहना के अनन्तर है।
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