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________________ २२२] [मूलाचारे ततो न दोषो देहस्वरूपमकयित्वा प्रमाणस्य कथेने । नारकाणां शरीर बीभत्सं दुर्गन्धि वैत्रियिकं सर्वाशुभपुद्गलनिष्पन्नं सर्वदुःखकारणं हुण्डकसंस्थानमशुभनाम दुःस्वरवदनं कृमि कुलादिसंकीर्णमिति ॥१०६३।। देवानां शरीरं व्यावणितं न तत्प्रमाणमतस्तदर्थमाह पणवीसं असुराणं सेसकुमाराण दस घणू चेव । वितरजोइसियाणं दस सत्त धणू मुणेयव्वा १०६४॥ भवनवासिवानव्यन्त रज्योतिष्ककल्पवासिभेदेन देवाश्चतुर्विधा भवन्ति । तत्र भवनवासिनां तावत्प्रमाणं व्यावर्णयति--पणवीसं-पंचभिरधिका विशतिः पंचविंशतिः, असुराणं-असुरकुमाराणां, सेसकुमाराण-शेषकूमाराणां नागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिवकुमाराणां, बस घण-दश दण्डाः। चशब्द: समुच्चयार्थस्तेन सामानिकवायस्त्रिशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकानामेतदेव प्रमाणं शरीरस्य वेदितव्यम् । व्यंतराः किनरकिंपुरुषगरुड गन्धर्व यक्षराक्षसभूतपिशाचा:, जोइसियाणं-ज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च व्यन्तराश्च ज्योतिष्काश्च व्यन्तरज्यो. तिष्कास्तेषां व्यन्तरज्योतिष्काणाम्, दस सत्त धणू–दश सप्त धनूंषि यथासंख्येन व्यन्त राणां दश धनूंषि सभी अशुभ पुग्दलों से बना हुआ है, इसलिए अत्यन्त बीभत्स है, दुर्गन्धित है, सर्व दुःखों का कारण है। इसका हुण्डक संस्थान है, अशुभनाम, दुःस्वरयुक्त मुख वाला और कृमियों के समूह आदि से व्याप्त है। देवों के शरीर का वर्णन किया है किन्तु उसके प्रमाण को नहीं बताया, अतः उसके लिए कहते हैं गाथार्थ-असुर कुमार देवों की ऊँचाई पच्चीस धनुष, शेष भवनवासियों की दश धनुष तथा व्यन्तर और ज्योतिषियों की क्रम से दश और सात धनुष समझना चाहिए ॥१०६४॥ आचारवत्ति-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और कल्पवासी के भेद से देवों के चारभेद होते हैं। उनमें भवनवासियों के प्रमाण कापहले कथन करते हैं। असुरकुमार देवों की ऊँचाई पच्चीस धनुष है। शेष कुमारों अर्थात् नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकूमार. द्वीपकूमार और दिक्कुमार दंवों की ऊँचाई दश-दश धनुष प्रमाण है। 'च' शब्द समुच्चय के लिए है, अतः उससे यह समझना कि इनके जो सामानिक, त्रायस्त्रिश पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषक देव हैं उन देवों के शरीर का भी प्रमाण यही है। किन्नर, किंपुरुष, गरुड, गन्धर्व, यक्ष, ग्रक्षस, भूत और पिशाच इन आठ प्रकार के व्यन्तर देवों के शरीर की ऊँचाई दश धनुष है तथा इनमें वायस्त्रिश ओर लोकपाल नहीं होते हैं अतः शेषनिकाय अर्थात् सामानिक, पारिषद् आत्मरक्ष, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषक देवों के शरीर का उत्सेध भी दश धनुष है। सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे-इन पांच प्रकार के ज्योतिषी देवों के शरीर की ऊँचाई सात धनुष है। इन देवों भी त्रायस्त्रिश और लोकराल भेद न होने से शेष सामानिक आदि देवों की ऊँचाई १. ग्रन्थान्तरों में गरुड के स्थान पर महोरग नाम प्रसिद्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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