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पर्याप्त्यधिकारः ]
[ २१७
नारकशरीरोत्सेधो द्वादश दण्डाः सप्तांगुलानि तथैकादशभागाश्च सप्तमप्रस्तारे जिह्वाख्ये द्वादश दण्डा हस्तत्रयं त्रीण्यं गुलानि त्रय एकादशभागाश्चोत्सेधः । अष्टमप्रस्तारे जिह्विकाख्ये नारकोत्सेधस्त्रयोदश दण्डा एको हस्तस्त्रयोविंशत्यं गुलानि पञ्चैकादश भागाश्च । नवमप्रस्तारे लोलाख्ये नारकोत्सेधश्चतुर्दश दण्डा एकोनविशति रंगुलानां सप्तैकादशभागाश्च । दशमप्रस्तारे लोलुपाख्ये नारकोत्सेधश्चतुर्दश धनूंषि त्रयो हस्ताः पंचदशांगुलानि नवकादश भागाश्च । एकादशप्रस्तारे स्तनलोलुपनामधेये नारकशरीरोत्सेधः पंचदश दण्डा द्वो हस्तौ द्वादशांगुलानि चेति ।। १०५८ ।।
तृतीयायां वालुकाप्रभायां 'नारकोत्सेधं व्यावर्णयन्नाह -
तदियाए पुढवीए णेरइयाणं तु होइ उस्सेहो ।
एकत्ती च धणू एगा रदणी मुणेयव्वा ॥ १०५ ॥
तदियाए - तृतीयायां, पुढवीए - पृथिव्यां वालुकाख्यायां णेरइयाणं - नारकाणां तु - विशेषः, होइ - भवति, उस्सेहो - उत्सेधः, एकतीसं च - एकत्रिंशच्च एकेनाधिका त्रिंशत्, धणु-धनूंषि, एगएका, रदणी - रत्निर्हस्तः, मुणेयव्वा - ज्ञातव्या । तृतीयायां पृथिव्यां नवमप्रस्तारे नारकाणामुत्सेधो धनुषा मेकत्रिंशदेका रत्विश्च ज्ञातव्या इति । शेषं सूचितं नारकप्रमाणमत्रापि मुखभूमिविशेषं कृत्वा नवोत्सेधभजितमिच्छया गुणितं द्वितीयपृथिव्युत्कृष्टना र कोत्सेधमुखसहितं च कृत्वा नेयं । तद्यथा - प्रथमप्रस्तारे तप्ताख्ये नारकोत्सेधः सप्तदश दण्डा एको हस्तो दशांगुलानि द्वो त्रिभागौ च । द्वितीय प्रस्तारे तापनामनि नारकोत्सेधो
प्रमाण शरीर की ऊँचाई है । संघाट नामक छठे प्रस्तार में नारकी के शरीर की ऊंचाई बारह धनुष, सात अंगुल तथा ग्यारह भाग प्रमाण है । जिह्वा नामक सप्तम प्रस्तार में बारह धनुष, तीन हाथ, तीन अंगुल और अंगुल के ग्यारह भागों में से तीन भाग प्रमाण ऊँचाई है । जिह्विका नामक आठवें प्रस्तार में नारकी की ऊँचाई तेरह धनुष, एक हाथ, तेतीस अंगुल और अंगुल के ग्यारह भागों में से पाँच भाग है। लोल नामक नवमें प्रस्तार में नारकियों की ऊंचाई चौदह धनुष, ऊन्नीस अंगुल, और अंगुल के ग्यारह भागो में से सात भाग प्रमाण है । लोलुप नामक दशवें प्रस्तार में नारकी के शरीर का उत्सेध चौदह धनुष, तीन हाथ, पन्द्रह अंगुल और अंगुल के ग्यारह भागों में से नव भाग प्रमाण है । स्तनलोलुप नामक ग्यारहवें प्रस्तार में नारकियों के शरीर का उत्सेध पन्द्रह धनुष, दो हाथ और बारह अंगुल प्रमाण है ।
तीसरी वालुकाप्रभा में नारकियों की ऊंचाई को कहते हैं
गाथार्थ - तीसरी पृथिवी में नारकियों के शरीर की जो ऊँचाई होती है वह इकतीस धनुष एक हाथ प्रमाण जाननी चाहिए ।। १०५६ ।।
आचारवृत्ति - बालुकाप्रभा नामक तृतीय पृथ्वी में नारकियों के शरीर की ऊँचाई इकतीस धनुष एक हाथ है। तृतीय नरक के नवमें प्रस्तार में यह ऊंचाई है अर्थात् इस नरक में नव प्रस्तार हैं । यहाँ पर भी मुख को भूमि में से कम करके नव उत्सेध से भाग देकर इच्छा राशि से गुणित द्वितीय पृथिवी को उत्कृष्ट नारक उत्सेध को मुख सहित करके निकालना चाहिए। उसी का स्पष्टीकरण - तप्त नामक प्रथम प्रस्तार में नारकियों के शरीर की ऊँचाई सत्रह धनुष, एक हाथ, दश अंगुल और अंगुल के तीन भागों में से दो भाग है । ताप नामक
१. क नारकशरीरप्रमाणमाह ।
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