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प्रथमे तु सीमन्तके प्रस्तारे हस्तत्रयमिति शरीरं प्रयमपृथिव्यां शरीरप्रमाणमेतदिति ॥ १०५७।। द्वितीयायां च पृथिव्यां नारकशरीरप्रमाणं प्रतिपादयन्नाह -
विदिया पुढवीए रइयाणं तु होइ उस्सेहो ।
पण्णरस दोण्णि बारस धणु रदणी अंगुला चेव ॥ १०५८ ॥
विदियाए द्वितीयायां द्वयोः पूरणी द्वितीया तस्यां पुढवीए - पृथिव्यां शर्कराख्यायां णेरइयाणंनारकाणां तुशब्दः संगृहीताशेषोत्सेधविशेषः, होदि - भवति, उस्सेहो - उत्सेधः शरीरोत्सेधप्रमाणं, पण्णरसपंचदश, दोणि-द्रो, वारस - द्वादश, धणु-- धनूंषि, रवणी - रत्नयः हस्ताः, अंगुला चेव - अंगुलानि चैव, यथासंख्येन संबन्धः । द्वितीयायां पृथिव्यामेकादशे प्रस्तारे नारकाणामुत्सेधः पंचदश धनूंषि द्वौ हस्तो द्वादशांगुलानि । अत्रापि मुखभूमिविशेषं कृत्वोत्सेधे हृते इच्छागुणितं मुखसहितं च सर्वप्रस्ताराणां प्रमाणं वक्तव्यम् । तद्यथा । अत्रैकादशप्रस्ताराणि भवन्ति तत्र प्रथमप्रस्तारे' सूरसूरकनाम्नि नारकाणामुत्सेधोऽष्टौ धनूंषि हस्तद्वयं द्वावेकादशभागावंगुलद्वयं च । द्वितीयप्रस्तारे स्तनकनाम्नि नारकोत्सेधो नव दण्डा द्वाविंशत्यं गुलानि चतुरेकादशभागाः । तृतीयप्रस्तारे मनकनामधेये नव धनूंषि त्रयो हस्ता अष्टादशांगुलानि षडेकादशभागानि चोत्सेधः । चतुर्थप्रस्तारे 'नवकसंज्ञके नारकोत्सेधः दश दण्डा द्वो हस्तों चतुर्दशांगुलानि साष्टकादशभागानि । पंचमप्रस्तारे घाटनामके एकादशदण्डा हस्तश्चैकादशांगुलानि दशैकादशभागाश्च शरीरोत्सेधः । षष्ठप्रस्तारे
[ मूलाचारे
विक्रांत नामक प्रस्तार में सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल प्रमाण शरीर की ऊँचाई है । एवं प्रथम सीमंतक नामक प्रस्तार में तीन हाथ प्रमाण शरीर होता है । इस प्रकार से प्रथम पृथिवी के नारकियों के शरीर की ऊँचाई कहो गयी है ।
द्वितीय पृथिवी में नारकियों के शरीर का प्रमाण प्रतिपादित करते हैं
गाथार्थ - द्वितीय पृथ्वी में नारकियों की ऊँचाई पन्द्रह धनुष, दो हाथ और बारह अंगुल होती है || १०५८।।
आचारवृत्ति – शर्करा नामक दूसरी पृथिवी में नारकियों के शरीर की ऊँचाई पन्द्रह धनुष, दो हाथ, बारह अंगुल प्रमाण है । यहाँ गाथा में भी 'तु' शब्द है उससे सभी प्रस्तारों के उत्सेध विशेष को समझ लेना । यहाँ पर भी भूमि में से मुख के प्रमाण को घटाकर अवशिष्ट प्रमाण को इच्छा के द्वारा गुणित करना चाहिए और मुख सहित लब्ध होने पर सर्वप्रस्तारों का प्रमाण जानना चाहिए। उसी का स्पष्टीकरण - इस नरक में ग्यारह प्रस्तार हैं । उसमें से सूरसूरक नामक प्रथम प्रस्तार में नारकियों के शरीर की ऊँचाई आठ धनुष, दो हाथ, दो अंगुल और एक अंगुल के ग्यारह भागों में दो भाग प्रमाण है । स्तनक नामक दूसरे प्रस्तार में नारकियों का ऊँचाई नव धनुष, बाईस अंगुल और एक अंगुल के ग्यारह भागों में से चार भाग प्रमाण है । मनक नामक तृतीय प्रस्तार में नव धनुष, तीन हाथ, अठारह अंगुल और एक अंगुल के ग्यारह भागों में से छह भाग प्रमाण है । नवक नामक चौथे प्रस्तार में नारकियों की ऊँचाई दश धनुष, दो हाथ, चौदह अंगुल और एक अंगुल के ग्यारह भागों में से आठ भाग है। घाट नामक पाँचवें प्रस्तार में ग्यारह धनुष, एक हाथ, ग्यारह अंगुल और अंगुल के ग्यारह भागों में से दश भाग १. क स्तरक-नाम्नि । २. क वनक ।
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