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पर्याप्यधिकारः ]
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सत्तधणु - सप्तधनूंषि, तिणि रयणी — त्रिरत्नयो हस्तत्रयं छन्चेव षडेव शब्दः समुच्चयार्थः, अंगुला - अंगुलानि, होंति - भवन्ति अष्टयवनिष्पन्नमंगुलं चतुर्विंशत्यं गुलैर्हस्तश्चतुर्हस्तं धनुः । नारकाणां प्रथमपृथिव्यां त्रयोदशप्रस्तारे विक्रान्ताख्ये शरीरस्योत्सेधः सप्त धनूंषि हस्तत्रयं षडंगुलानि इति प्रथमे पुनः सीमन्तकाख्ये प्रस्तारे त्रयो हस्ता नारकशरीरस्योत्सेधो मुखं संप्त धनूंषि हस्तत्रयं षडंगुलानि भूमिः, भूमेर्मुखं विशोध्य शुद्धशेषस्य द्वादशभिर्भार्ग ते इच्छया गुणिते लब्धे मुखसहिते प्रथमवजितद्वादशप्रस्ताराणां नारकशरीरप्रमाणमागच्छतीति । तथा नरनाम्नि द्वितीयप्रस्तारे एकं धनुरेको हस्तः सार्द्धान्यष्टांगुलानि च नारकाणां शरीरोत्सेधः तृतीयप्रस्तारे रोरुकनामधेये शरीरस्योत्सेध एकं धनुस्त्रयो हस्ताः सप्तदशैवांगुलानि । चतुर्थप्रस्तारे भ्रान्तसंज्ञके नारकतनोरुत्सेधो द्व धनुषी द्वो हस्तौ सार्द्धमंगलम् । पंचमप्रस्तार उद्भ्रान्तनाम्नि दण्डत्रयं दशांगुलानि तनोरुत्सेधः । षष्ठप्रस्तारे संभ्रान्तसंज्ञके धनुषां त्रयं द्वो हस्तावं गुलान्यष्टादश सार्द्धानि च । सप्तम प्रस्तारेऽसंभ्रांताख्ये कार्मुकचतुष्टयमेको हस्तस्त्रीण्यंगुलानि च शरीरोत्सेधः । अष्टप्रस्तारे विभ्रान्ताख्ये कोदण्डचतुष्टयं हस्तत्रयमेकादशांगुलानि सार्द्धानि तनोरुत्सेधः । नवमप्रस्तारे त्रस्तनामनि कार्मुकाणां पंचकमेको हस्तोऽङ गुलानि च विंशतिः शरीरोत्सेधः । दशमप्रस्तारे त्रसितनामके षड् धनूंषि सार्द्धांगुलचतुष्कं च शरीरप्रमाणम् । एकादशप्रस्तारे वक्रान्ताख्ये धनुषां षट्कं हस्तद्वितयं त्रयोदशांगुलानि च । द्वादशप्रस्तारे चावक्रांताख्ये धनुषां सप्तकं सहितमेकविशत्या साद्धगुलेन च तनोः प्रमाणम् । त्रयोदशप्रस्तारे विक्रान्ते सप्त 'चापा हस्तत्रयं षडंगुलानि च शरीरोत्सेधः ।
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हैं । उनमें से अन्तिम विक्रान्त नामक प्रस्तार में यह ऊँचाई समझना । तथा सीमंतक नामक प्रथम प्रस्तार में नारकियों के शरीर का उत्सेध तीन हाथ प्रमाण है। आठ जौ का प्रमाण एक अंगुल होता है, चौबीस अगुल का एक हाथ एवं चार हाथ का एक धनुष होता है ।
अब प्रत्येक प्रस्तार की ऊँचाई निकालने का विधान कहते हैं
पहले प्रस्तार की तीन हाथ ऊँचाई को मुख एवं अन्तिम तेरहवें प्रस्तार की ऊँचाई सात धनुष, तीन हाथ, छह अंगुल को भूमि कहते हैं। भूमि में से मुख को घटाकर अवशिष्ट को बारह से भाग देकर उसे इच्छाराशि से गुणित लब्ध के मुख सहित होने पर प्रथम प्रस्तार को छोड़कर बारह प्रस्तारों के नारकियों के शरीर का प्रमाण आ जाता है। उसे ही स्पष्ट करते हैं
नर नामक द्वितीय प्रस्तार में नारकियों के शरीर का उत्मेध एक धनुष एक हाथ और साढ़े आठ अंगुल है । रोरुक नामक तृतीय प्रस्तार में शरीर की ऊँचाई एक धनुष, तीन हाथ और सत्रह अंगुल है । भ्रान्त नामक चौथे प्रस्तार में नारकियों के शरीर का उत्सेध दो धनुष, दो हाथ, डेढ़ अंगुल है । उद्भ्रान्त नामक पंचम प्रस्तार में तीन धनुष, दश अंगुल उत्सेध है । संभ्रान्त नामक छठे प्रस्तार में तीन धनुष दो हाथ, साढ़े अठारह अंगुल है । असंभ्रान्त नामक सप्तम प्रस्तार में चार धनुष, एक हाथ और तीन अंगुल प्रमाण शरीर की ऊँचाई है । विभ्रान्त नामक आठवें प्रस्तार में चार धनुष, तीन हाथ और साढ़े ग्यारह अंगुल शरीर की ऊँचाई है । त्रस्त नामक नवम प्रस्तार में पाँच धनुष, एक हाथ और बीस अंगुल प्रमाण शरीर का उत्सेध है । त्रसित नामक दशवें प्रस्तार में छहधनुष, साढ़ े चार अंगुल प्रमाण शरीर की ऊंचाई है । वक्रान्त नामक ग्यारहवें प्रस्तार में छह धनुष, दो हाथ और तेरह अंगुल प्रमाण है । अवक्रान्त नामक बारहवें प्रस्तार में सात धनुष और साढ़े इक्कीस अंगुल प्रमाण शरीर की ऊँचाई है । तथा तेरहवें १. क चापानि ।
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