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________________ २१८] [ मूलाचारे दण्डानामेकोनविंशतिर्नवांगुलानि त्रिभागश्च । तृतीयप्रस्तारे तपननाम्नि नारकोत्सेधो विशतिर्दण्डास्त्रयो हस्ता अंगुलानि चाष्टौ। चतुर्थप्रस्तारे तापनाख्ये शरीरोत्सेधो द्वाविंशतिधनुषां द्वौ हस्तौ षडंगुलानि द्वौ विभागौ च । पंचमप्रस्तारे निदाघाख्ये चतुर्विंशतिचापाः' पंचांगुलानि एको हस्तस्त्रिभागश्चकः । षष्ठप्रस्तारे प्रज्वलिताख्ये नारकोत्सेधः षड्विशतिर्धनुषां चत्वारि चांगुलानि। सप्तमेन्द्र के ज्वलितसंज्ञके नारकोत्सेधः सप्तविंशतिचापास्त्रयो हस्ता द्वे अंगुले त्रिभागौ च द्वौ । अष्टमप्रस्तारे संज्वलनेन्द्रके एकोनत्रिंशदुत्सेधो धनुषां हस्तद्वयमेकांगुल. मेकस्त्रिभागश्च । नवमे च प्रस्तारे प्रज्वलितसंज्ञ एकत्रिंशत्को दण्डा हस्तश्चैको नारकोत्सेध इति ॥१०५६॥ चतुर्थ्यां च पृथिव्यां 'नारकशरीरप्रमाणमाह चउथीए पुढवीए रइयाणं तु होइ उस्सेहो। बासट्ठी चेव षणू वे रदणी होंति णायव्वा ॥१०६०॥ चउथीए-चतुर्णा पूरणी चतुर्थी तस्यां चतुर्थ्या, पुढवीए-पृथिव्यां पंकप्रभायां, नारकाणामुत्सेधो भवति द्वाभ्यामधिका षष्टिर्धनुषां द्वे चारत्नी द्वौ च हस्तौ ज्ञातव्यो। चतुर्थपृथिव्यां सप्तमप्रस्तारेन्द्रके नारकोत्सेधप्रमाणमेतत् सेन्द्रको नारकोत्सेधस्तृतीयपृथिवीनारकाणामुत्कृष्टशरीरप्रमाणं मुखं कृत्वा सप्तमप्रस्तारनारकोत्सेधं भूमि च कृत्वा तयोविशेषं चोत्सेधभाजितेच्छागुणितं मुखसहितं कृत्वा वाच्यस्तद्यथा-प्रथमप्रस्तारे द्वितीय प्रस्तार में नारकियों की ऊंचाई उन्नीस धनुष, नव अंगुल और अंगुल के तृतीय भाग है। तपन नामक तृतीय प्रस्तार में नारकियों की ऊँचाई बीस धनुष, तीन हाथ, आठ अंगुल है। तापन नामक चतुर्थ प्रस्तार में शरीर की ऊँचाई बाईस धनुष, दो हाथ, छह अंगुल और एक अंगुल के तीन भागों में से दो भाग है। निदाघ नाम के पांचवें प्रस्तार में चौबीस धनुष, एक हाथ, पाँच संगुल और अंगुल के तोन भाग में से एक भाग है। प्रज्वलित नाम के छठे प्रस्तार में नारकियों की ऊंचाई छब्बीस धनुष, चार अंगुल है। ज्वलित नामक सप्तम इन्द्रक में नारकियों की ऊंचाई सत्ताईस धनुष, तीन हाथ, दो अंगुल और एक अंगुल के तीन भागों में से दो भाग है। संज्व नाम के आठवें प्रस्तार में शरीर की ऊँचाई उनतीस धनुष, दो हाथ, एक अंगुल और बगुल के तीन भागों में से एक भाग है। तथा नवमें प्रस्तार में नारकियों के शरीर की ऊंचाई इकतीस धनुष, एक हाथ है। चौथी पृथिवी में नारकियों के शरीर की ऊंचाई कहते हैं गाथार्थ-चौथी पृथिवी में नारकियों का जो उत्सेध है वह वासठ धनुष और दो हाथ जानना चाहिए ॥१०६०॥ आचारवृत्ति-चौथी पंकप्रभा पृथिवी में नारकियों की ऊँचाई बासठ धनुष, दो हाथ प्रमाण है। इस पृथ्वी में सात प्रस्तार हैं। उनमें से यह अन्तिम प्रस्तार के शरीर की ऊँचाई है। तीसरी पृथिवी के नारकियों के शरीर का जो उत्कृष्ट उत्सेध है वह मुख है और इस चतुर्थ नरक के सप्तम प्रस्तार का उत्सेध भूमि है। भूमि में से मुख को घटाकर उसमें जो अवशेष रहता है उसको उत्सेध के प्रमाण सात से भाग देकर इच्छाराशि से गुणा करना चाहिए और मुख सहित करके वर्णन करना चाहिए। तथाहि-आर नामक प्रथम प्रस्तार में पैंतीस धनुष, दो हाथ, बीस १.क चापानि। २. क चापानि। ३. क नारकोत्सेधं व्यावर्णयन्नाह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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