SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शीलगुणाधिकारः' सीलगुणालयभूदे कल्लाणविसेसपाडिहेरजुदे । वंदित्ता अरहंते सीलगुणे कित्तइस्सामि ॥ १०१८॥ सील - शीलव्रतपरिरक्षणं शुभयोगवृत्तिरशुभयोगवृत्ति परिहार आहारभयमंथुनपरिग्रहसंज्ञाविरतिपञ्चेन्द्रिय निरोधः काय संयमविषयोद्भवदोषाभावः क्षांत्यादियोगाश्च, गुणा-गुणाः संयमविकल्पाः पंचमहाव्रतादयः कषायाद्यभावोऽतिक्रमाद्यभावः षट्कायसविकल्पसंयम दशप्रकाराब्रह्माभाव आकंपितादिदोष विमुक्तिरालोचनादिप्रायश्चित्तकरणं । शीलानि च गुणाश्च शीलगुणास्तेषामालयभूताः सम्यगवस्थानं संजाताः शीलमुणालयभूतास्तान् शीलगुणालयभूतान् व्रतानां व्रतपरिरक्षणानां चाधारान् । कल्लाण - कल्याणानि स्वर्गावतरणजन्म निष्क्रमण केवलज्ञानोत्पत्तिनिर्वाणगमनानि, विसेस - विशेषा अतिशयविशेषाश्चतुस्त्रिशत्, स्वाभाविका गाथार्थ - पंचकल्याणक अतिशय और प्रतिहार्यों से युक्त, शील एवं गुणों के स्थान स्वरूप अर्हन्तों को नमस्कार करके मैं शील और गुणों का कीर्तन करूँगा ।। १०१८ ।। आचारवृत्ति -- जो व्रतों की रक्षा करते हैं उन्हें शील कहते हैं । शुभ मन-वचन-काय वर्तन करना और अशुभ मन-वचन-काय की प्रवृत्ति का परिहार करना, आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओं से विरत होना; पाँचों इन्द्रियों को अपने-अपने विषयों से रोकना; काय संयम - प्राणिसंयम के विषय में उत्पन्न हुए दोषों को दूर करना और उत्तम क्षमा आदि को धारण करना ये सब शील के भेद हैं । सर्वशील अठारह हज़ार भेदरूप हैं जिनका वर्णन इस अधिकार में करेंगे । 1 जो आत्मा का उपकार करें वे गुण कहलाते हैं । यहाँ संयम के भेदों को गुण कहा है जो पाँच महाव्रत आदि रूप हैं । कषाय आदि का अभाव होना, अतिक्रम, व्यतिक्रम आदि का अभाव होना, षट्काय जीवों की दया पालनेरूप संयम का होना, दश प्रकार के अब्रह्म का अभाव होना, आकम्पित आदि दोषों से रहित आलोचना, प्रायश्चित्त आदि का करना ये सब गुण हैं । ये चौरासी लाख होते हैं, जिनका वर्णन इसमें करेंगे । Jain Education International वे अरिहंतदेव शील और गुणों के आधारभूत हैं, स्वर्गावतरण, जन्माभिषेक, परिनिष्क्रमण, केवलज्ञान- उत्पत्ति और निर्वाणगमन इन पाँच कल्याणकों से सहित हैं, विशेष - अतिशयविशेष अर्थात् चौंतीस अतिशयों से युक्त हैं । भगवान् के जन्म से ही पसीना नहीं आना १. फलटन से प्रकाशित मूलाचार में शील गुणाधिकार बारहवाँ है और पर्याप्ति अधिकार ग्यारहवाँ है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy